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प्रश्नध्याकरण अथ कथम्भूते उपाश्रये साधुभिर्न वस्तव्यम् ? इत्याह-'आदाफम्मबहुले ' आधा कर्मबहुल:=आधोनम्-आधातया, अर्थात् सार्थ यत्मसायोपमर्दनरूप कर्म,तेन बहुलो व्याप्तो 'जे' यः एप विध उपाश्रयो ' से ' स पर्जयितव्य । अनेन अदतादानविरमणलक्षणमूलगुणाशुद्धः परिहारः उक्तः। स दोपरमत्युपभोगेन मूल• गुणहानिर्भवतीति भारः । तथा 'जत्य' यत्र-' अतो' अन्तर्भागे 'चाहिए चहिर्भागे, 'मज्झे य' मध्ये च 'आसियसम्मज्जि मोसित सोहियछाणदुमण लिंपण अणुलिंपण जलगभडचालण ' आसक्ति समानितोसिक्तगोधितछाणधवलनलेपनानुलेपनज्वलनभाण्डचालनम्-ता-आसिक्तम् आसेचनम् उदकादिच्छोटनमित्यर्थः, सम्मार्जितम्-शलारा इस्तेनमार्जन्येत्यर्थः, कच परसशोधनम् , शोधित भित्त्यादि सलग्नजालाद्यपनयनेन शुद्धीकृत 'डाग' छाण उगणनगोमयेन ,सस्करणम् , दुमण' धालन-सेटिकादिना भित्त्यादेरुज्ज्वलीकरणम् , कम्मयहुळे य जे से ) और जो उपाश्रय आधार्म घल हो-साधु के निमित्त पटूकायमदनरूप कर्म से न्याप्त हो-उसमे साधु को नहीं वसना चाहिये । क्यों कि ऐसे उपाश्रय में रहेने से साधु के इस अदत्तादानविरमणरूपमूलगुण की शुद्धि नहीं रहती है। और नही रहने से इस मूलगुण की शुद्धि रहती हैं। तात्पर्य इसका यह है कि सदोपवसति के उपभोग से साधु के मूलगुणों की हानि होती है यही यात "अहाकम्मबिहुलेय जे से" इस सूत्राश द्वारा प्रदर्शित की गई है । तथा (जस्य
अतो यहिं सज्झे य ) जो उपाय भीतर में यादिर मे और मध्यभाग में (आसियसमजि ओसित्तसोहिय-छाण-दुमणलिंपण अणुलिंपण-जलणभडचालण) पानी से छिड़का हुआ हो, बुहारु समार्जनी से जहा का कूडा कचरा साफ कर दिया गया हो, भीत आदि पर लगे हुए -जाले - जहाँ उतार दिये गये हो, जो गाय के गोबर से लीपा गया हो, चुने आदि से સાધુને નિમિત્તે છકાય મર્દનરૂપ કર્મથી વ્યાપ્ત હોય, તેમાં સાધુએ રહેવું જોઈએ નહીં કારણ કે એવા ઉપાશ્રયમાં રહેવાથી સાધુના આ અદત્તાદાન વિરમણરૂપ भूण गुणन हानि थाय छे, मे वात "अहाफम्म-बहुले य जेसे " मा सूत्राश द्वारा प्रगट ४२० छे तथा “ जत्य अतो वहिं मज्झे य" २ उपाश्रय म १२, मा२ मन भाय मागमा "आसियसमज्जिओसित्तसोहियछाण दुमणलिंपणअणुलिंपणजलणभ डचालण" पाणी छोटेस हाय, साथी न्यानो કચરો સાફ કર્યો હોય, દીવાલ આદિ પર લાગેલા જાને ત્યાથી ઉતારી લીધા હોય, જે ગાયના છાણથી લીધેલ હોય, ચુના વગેરેથી જેની દીવાલે