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सुदर्शिनी टीका अ०३ सू०२ अदत्तादानविरमणस्वरूपनिरूपणम्
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तणकटुसकराइ पुष्पफलत्वक् प्रचालफन्द मूलतृणकाष्ठशर्करादि तत्र - पुष्पफले प्रतीते, लकुचा, प्रालोकुरः कन्दः =यूरणादिः, मूलम् = मूलकादि, तृणकाष्ठं च प्रतीतम्, शर्करा := ' ककर ' इति भाषा प्रसिद्धा, एतान्यादौ यस्य तत्तथोक्त द्रव्यम् अप्प ' अल्प- स्तोक या ' बहु' हु=प्रचुर वा अणु' अणु आकारेण सूक्ष्म वा 'यूल' स्थूलम् - आकारेण बृहद् वा, तत् 'न कप्पड़' न कल्पते ' उग्गहे ' अवग्रहे ' अदिष्णे ' अदत्ते तत्तद्वस्तुस्वामिनि देश ममाप्येत्यर्थः, गेण्हेउ ' ग्रहीतुम्, किन्तु ' जे' यद् ग्राह्य भवेत्, तत् 'हणि हगि ' अहन्यइनि=प्रतिदिनम् ' उग्गह ' अवग्रह - तत्सामिनिदेशम्, 'अणुष्णनि य' अनुज्ञाप्य = प्राप्य 'गेण्डियन्त्र' ग्रहीतव्यम् । तथा सव्नकाल ' सर्वकाल सदा 'अचियत्तघरप्पवेसो ' अमीतिकारकगृहप्रवेश " वज्जेयव्यो' वर्जितव्य' तथा
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कुछ भी हो जैसे (पुष्पफलतयप्पनालकद्मृलतणकट्टसकराड ) चाहे वह वस्तु पुष्परूप में हो, फलरूप में हो, छालरूप में हो, प्रवाल- कोंपल रूप में हो, सरण आदि कद रूप में हो, मूलक आदि रूप मे हो, तृण काष्ठ आदि के रूप हो चाहे ककर आदि के रूप में भी क्यों न हो । ये सब वस्तुएँ वहा ( अप्प वा ) थोड़ी हो या ( बहु वा ) बहुत हो (अणु वा ) आकार से छोटी हो या (थूल वा ) बडी हो, किसी भी तरह से वह इन वस्तुओ को ( न कप्पर उग्गहे अदिण्णम्मि गेहेउ ) विना उनके मालिक की आज्ञाप्राप्त किये किसी भी रूप में लेना नही कल्पता है । तथा (जे) जो वस्तुएँ साधु के लिये ग्राह्य है वे भी (हणि हणि ) प्रतिदिन (उहे अणुणावि य ) उनके स्वामी की आज्ञा प्राप्त कर ही (गेहियच्व ) ग्रहण करने योग्य हैं। तथा ( वज्जेयच्वो य सव्वकाल
द्रव्य होय, " पुप्फफ्लतयप्पबालकदमूल तणकटुसकराइ ” ભલે તે વસ્તુ પુષ્પરૂપે હાય, લરૂપે હોય, છાલરૂપે ડાય, પ્રવાલકુ પળના રૂપમા હેાય, સૂરણ આદિ કદરૂપે હોય, મૂળ આદિ રૂપમા ાય, તૃણુ કાષ્ઠ આદરૂપે હાય, ભલે કાકરા माहिये होय, ते बधी वस्तुओ त्या " अप्प बा" थोडी होय े " बहु वा " वधारे होय, " अणु वा " उभा नानी होय “ यूग वा માટી હાય, अर्ध पशु रीते थे पस्तुभने “ न कप्पइ उग्गहे अदिष्णम्मि गेण्हे उ " तेना માલિકની આજ્ઞા લીધા વિના કોઇ પણ રીતે તેને ગ્રહણ કરવાનુ મુનિને ८ जे કલ્પતુ નથી તથા " इहिणि " प्रतिहिन " લઈને જ " गेण्डियव्व "
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વસ્તુએ સાધુઓને ગ્રહણ કરવા अणुणा व " तेमना ગ્રહણ કરવા ચૈાગ્ય છે તથા
ચેાગ્ય છે તે પણ भासिउनी माज्ञा
वज्जेयो य सव्व
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