________________
७०
-
-
-
-
-
-
-
-
प्रश्नोयार यमुणिणा' मातमुनिना भगाता महावीरण ' पण्णपिय ' प्रमापित ‘परूविंय' मरूपित ' पसिद्ध ' मसिद्धम् 'मिद्धवरसासणमिणं' सिद्वारशामनमिदम् 'आप विय' आग्व्यात 'सुदेसिय' मुदेशित ' पसत्थ ' प्रशस्त ' चीय सवरदार' द्वितीय सवरद्वार ' समत्त ' समाप्तम् । एषा सर्वेपा पदाना व्याग्या प्रथमसवर द्वारोपसहारे द्रष्टव्या । 'तिमि' इति ब्रीमि-अस्यार्थः पूर्वमुक्तः ॥मू-९।। ॥ इति श्री विश्वविर यात-जगबलभ - प्रसिद्धवारकपञ्चदशभापाकलिवललिवकलापालापा-प्रविशुद्धगद्यपधनेकग्रन्यनिर्मापक- गदिमानमर्दकश्रीशाहू छत्रपतिकोल्हापुररानप्रदत्त जनशास्त्राचार्य' पदभूपित्तकोल्हापुरराजगुम पालनामचारि जैनाचार्य जनधर्मदिराकरपूज्यश्री घासीलालनतिरिरचिताया श्री प्रश्नन्यावरणमनस्य सुदर्शन्या ख्याया व्याख्याया सपरात्माके द्वीतीये-भागे सत्यवचननामक
द्वितीय सरद्वार समाप्तम् ॥ २॥ हैं तथा (अणुपालिय) त्रिकरण त्रियोगों से जो इसका अच्छी तरह से आचरण करते है वे ( अणाए आराहिय भवह ) इमकी आराधना सर्वज्ञ भगवान् के वचनों से ही करते हैं ऐसा जानना चाहिये । (एव) इस प्रकार से यह उक्तरूप सवरबार (णायमुणिणा) प्रसिद्धक्षत्रियवश में उत्पन्न हुए मुनि भगवान् मरावीर ने (पण्णविय ) प्रज्ञापित किया है शिष्यो के लिये सामान्य रूप से करा है । (परुविय) प्ररपित किया हैभेदानुभेदप्रदर्शन पूर्वक कथित किया है । इसलिये यह (पसिद्ध) प्रसिद्ध है-आचार्यादिपरपरा से इसका पालन इसी रूप से चला आ रहा है अत. निर्दोष है । तथा (सिद्धवरसासणमिण) भूतकाल में जितने भी सिद्ध हो चुके है उनका यह उत्कृष्ट शासनरूप है सो (आघविय। लिय" त्रि.२५ योगाथी मातभनु सारी माय२५५ ४२ छ तमा " अणाए आराहिय भवइ " तनी माराधना स सापानना वयनाथा ४२ छ सम सभा, "एव" मा प्रकारे मा ( या प्रमाणेनु) सपर द्वार “णायमुणिणा" प्रसिद्ध क्षत्रिय ५शमा भिसा भडावी२ मावान "पण्णविय" प्रज्ञापित यु छ शिष्याने भाट सामान्य ३२ ४ा छ 'परू पविय " ५३पित यु छ सहानुले शानव यु छ तेथी त “ सिद्ध" પ્રસિદ્ધ છે આચાર્યાદિ પર પરાથી તેનું આ રૂપેજ પાલન થતું આવ્યું છે, तथीत निषि छ तथा “सिद्धररसासणमिय " भूतमा २८क्षा (सखा २५ गया छ तमना अष्ट शासन३५ वजी "ओधविय " तेनु -