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सुदर्शिनी टीका अ०१ सू० २ प्रथमसंवरद्वार निरूपणम्
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सुई' शुचि = भाजतोच हेतुत्वात् ५६, 'छा' पूजा=भावाचना- प्राण्युपमर्दनरहितत्वात् ५७ 'विमल' मिला- मिथ्यात्यारित्यादिगलनर्जितसाद, ५८, पभासा य ' प्रभासा च - प्रकाशरूपा के पलवानज्योतीरूपत्वात्, सर्वप्राणिना सुखप्रकाशकत्वाच ५९५ ' निम्मलत्तरा निर्मतरा - सकलकर्मगर्जितत्वाव ६०, 'त्ति एवमादीणि' इत्येवमादीनि 'नियगुणनिम्मियाई' निजगुणनिर्मितानि= गणलक्षितानि पञ्जवनामागि' पर्यायनामानि तत्तत्तद्धर्माविताभिधानानि, हुति' भवन्ति ' अहिंसाए भगवर्टए ' अहिंसाय । भगवत्या ॥ ०२ ॥
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जाती है - इसलिये इस आत्माकी निर्मलता का कारण होने से हम अरिमा का नाम ( पवित्ता) पवित्र है ५५॥ भाव शुचिता का कारण होन से इसका नाम (ई) शुचि है ५६ । इस अहिंसा में प्राणियो के प्राणों का उपमर्दन नही होता है अत यह भावपूजारूप होने से इसका नाम ( पूया ) पूजाभावपूजा ह ॥ ५७ इसकी जो आराधना करते हैं वे मियाल अविरति आदि मलों से वर्जिन हो जाते है इसलिये इसका नाम ( विमल ) विमला है ५८ | यह अहिंसा केवलज्ञानरूप ज्योति स्वरूप होने से ( पभासा य ) एक प्रकाशरूपा है। इसलिये इसका नाम प्रभास है ५९ । इसकी प्रादुर्भूत होते ही आत्मा से नकल कर्मों का अभाव हो हैम ( निम्मलतरा ) निर्मलतरा है ६० । ( एवमाण नियगुणनिमियाइ पज्जवनामाणि होति अहिंसाए भगवईए ) इस प्रकार इस अहिंसा भगवती के ये साठ नाम गुणानुसार है। ये नाम इम अहिंसा भगवती के पर्यायवाची - तत्तद्वर्म की अपेक्षा को लेकर शब्द है | मृ० २ ॥
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आत्मानी निर्भणता भाटे अशुभत होवाची ते अडिसानु नाम " पवित्ता " પવિત્રતા છે (૫૫) ભાવ શુચિતાના કારણરૂપ હોવાથી તેનુ "सुई " शुचि છે (૫૬) આ અહિંસામા પ્રાણીઓના પ્રાણાનું ઉપખ્તન થતુ નથી તેથી તે ભાવપૂજારૂપ હાવાથી તેનુ નામ पूया ” धून लावपून छे (५७) ने तेनी આરાધના કરે છે તે મિથ્યાત્વ, અવિરતિ આદિ મળેથી રહિત થઇ જાય छे, तेथी तेनु नाम " विमल " विमला छे (१८) मा अहिंसा ठेवण ज्ञान ३५ योनिश्वय होवाथी " प्रभासाय " मेड अमराइय छे, तेची तेनु नाभ प्रभास, (प) तेनो हुर्भाव थता न आत्मामाथी धीरे ધીરે સઘળા भेना लावथ लय हे, तेथी तेनु नाम " निम्मलतरा " निर्मलतरा छे (१०) 'एवमारीणि नियगुणनिम्म्याइ पज्जन अमाणि होति अहिंसाए भगवईए આ પ્રમાણે આ અહિંસા ભગવતીના ગુણ પ્રમાણે સાઠે નામ છે તે નામેા આ અહિમા ભગવતીના પર્યાયવાચી-તે તે ધમની અપેક્ષાએ શબ્દ એ ાસ રા
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प्र० ७२