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सुदर्शिनी टोका अ० १ सू० ३ अहिंसामाहात्म्यनिरूपणम् पितामिव सलिलम्-जलम् , प्राणरक्षकत्वात् , 'सुहियाण पिव अमण' क्षुपिर नामिनाशनम् क्षुधातमाणिना कृतेऽशन भोजनमिव, जन्नग्राणा: इति वचना तथा-' समुद्दमझे व पोयरहण ' समृद्रमध्ये इस पोताहनम्-यथा समुद्रम ये : माणिना त्राणाय भवति, तथैव ससारसमुद्रमध्ये इयमहिंसा प्राणिना त्राण पोतायते इति भावः । तथा-'चउप्पयाण च आसमपय ' चतुप्पदानां च आश्र पदम्-यथा चतुप्पदप्राणिना कृते गोप्ठ विश्रामस्थान तयैवाहिंसापि सर्वप्राणि प्राणरक्षा का साधनभूत जल होता है उमी प्रकार यह अहिंसा : प्राणियों के प्राणों की रक्षा का एक साधन है। (खुहियाण पिच असण " अन्न ही प्राण है ” इस उक्ति के अनुसार जिस प्रकार भूख : पीडित हुए प्राणियों के लिये भोजन एक मात्र आधारभूत होता उसी प्रकार यह अहिंसा भी जीवो की रक्षा करने का एक सर्वोत्त साधन है । (समुद्दमझेव पोयवहण ) समुद्र के बीज में नौका जिर प्रकार प्राणियों की रक्षा करने वाली होती है उसी प्रकार ससार समु के बीच में पतित हुए प्राणियों की रक्षा करने के लिये यह अहिंस ही एक सर्वोत्तम द्रढ़ नौका जैसी है। (चउप्पयाण च आसमपय चतुप्पद-जानवरों के लिये जिस प्रकार विश्रामस्थल गोष्ट होता है उस प्रकार यह भगवती अहिंसा भी सर्वप्राणियों के लिये सर्वोत्तम विश्रामस्था है। (दुट्ठियाण च ओसबिल ) रोगग्रस्त व्यक्तियों को जिस प्रका ओपधि का सहारा होता है उसी प्रकार कर्मरोगग्रस्त भव्य जीवों में
સ્થાઓની પ્રાણુરક્ષા માટે પાણી સાધનરૂપ બને છે, એ જ પ્રમાણે આ અહિંસા
प्राणीमाना प्राप्रयापदानु मे साधन छ " खुहियाण पिच असण" અન્ન જ પ્રાણ છે” તે કથન પ્રમાણે જેમ સુધાથી પીડાતા પ્રાણીઓ માટે ભજન જ એક માત્ર આધાર હોય છે એ જ પ્રમાણે આ અહિંસા પણ
वानु २क्षय ४२वानु मे सर्वोत्तम साधन छ “समुहमज्जेव पोय वहण" સમુદ્રની વચ્ચે જેમ નૌકા પ્રાણીઓનું રક્ષણ કરે છે તેમ આ સાર સાગરમા છેલા પ્રાણુઓની રક્ષા કરવાને માટે આ અહિંસા જ મજબૂત નૌકા જેવી छ "चउप्पयाण च आसमपय " यतु५४-नवरीने भाटभ गा४ (4131) વિશ્રામસ્થાન હોય છે એ જ પ્રમાણે આ ભગવતી અહિંસા પણ સમસ્ત प्रामाने भाट सर्वोत्तम विश्रामन्थान छ “ दुहट्ठियाण च ओसहि बल" ઉગીને જેમ ઔષધિને સહારો હોય છે તેમ કરેગગ્રસ્ત ભવ્ય જીને