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सुदर्शिनी का अ० १ सू०९ भायनास्वरूपनिरूपणम् णायाम् उद्गमादिदोपरूपायाम् , ' पयए' प्रयत' अयत्नवान-तद्गतदोपपरिहारे उद्यमवानित्यर्थ , पडियमित्ता' पतिकन्य-कायोत्सर्ग कृत्वा 'पसते ' प्रशान्तः= आहारेऽनातुरः तया-'जामीण सुहनिसणे' आसीनसुग्वनिपण्णः, तत्र-आसीन = उपविष्टः, सुखनिपणागमनागमनजनितपरिश्रममवेदयन् सुखपूर्वक स्थितः, पुनः कीदृशः ? 'मुहत्तमेत्त च' मुहर्तमान च, ' झाणसुभगोगनाणसज्जायगोत्रियमणे' भ्यानशुभयोग ज्ञानस्वाध्यायगोपितमनाः, तर यान-धर्म यानादिलक्षणम् , शुभयोगा सयमव्यापार , ज्ञानम्-भगवदुपदिप्टमोक्ष हेतुनिरवयसात्तिपरिचिन्तनम् , तथा-स्वाध्यायः मूलमनपरिगुणनम् , एतैोपित = विषयान्तरगमनेन निरुद्ध मनो येन सः, अतएर 'धम्ममणे' धर्ममना'-श्रुतचारिजलक्षणधर्मयुक्ताः, तथा' अविमणे' अविमना =अरमपिरसारिलाभेऽपि विपादार्जितचित , तथा ' मुह (पुणरवि अणेसणाए पया) आगामी साल में उद्गमादि दोप रूप अनेपणा मे प्रचत्नगील बना हुआ-अर्थात्-एपणागत दोपों के परिहार में मदा सावधान बना हुआ वह मुनि (पटिझमित्ता) कायोत्सर्ग करके (पसते ) प्रशान्त बने-आहार में आतुर न बने ( आसीणहनिसपणे) चैठ जावे और भिक्षा के निमित्त गमनागमन में होने वाले परिश्रम का कुछ भी ख्याल न करे प्रत्युत सुखपूर्वक-अच्छी तरह से चैटे । (मुहत्तमेत्त च झागलुभजोगनाणसमार गोळ्यिमणे) उस समय वह एक मुहर्ततफ धमे चानादिरूप ध्यान से, शुभयोग से, भगवान के द्वारा कथित मोल की हेतुभूत निरवद्य साधुवृत्ति के विचार से, तथा मूलसूत्र के परिगुणन से विषयान्तर में जाते हुए अपने मन को रोंके और श्रुतचारित्ररूप धर्म से युक्त अपने मन को रसे। इस तरह (धम्ममग्गे) धर्म मार्ग वाला तथा (अविमणे) अविमन-अरम चिरस आदि आहार अमाह २हित अनेट तथा “पुणरवि अणेमणारा पया" भविश्यमा मा દોષરૂપ અનેણામાં પ્રયત્નશીલ બનીને–એટલે કે એણુગત દાના ત્યાગમાં सावधान मनीन ते भुनि “ पडिकमित्ता" डायोत्सर्ग उरीने 'पसत" प्रान्त मन-माहारने भाट मातुर ने भने “आसीणसुहनिसणे" गेसी नय मन ભિક્ષાને નિમિત્ત ગમનાગમનમાં થતા પરિશ્રમને કહેજ પણ વિચાર ન કરે अत्यंत भुण -१२१५२ शत मेले मुहत्तमेत्त च झाण सुभजोगनाणसज्झाय गोवियमणे" ते सभये ते मे भुत सुपी बम ध्याना३ि५ ध्यानया, शुभ ગથી ભગવાન દ્વારા કથિત મોલની હેતુભૂત નિરવદ્ય સાધુ વૃત્તિના વિચાથી, તથા મૂળસૂત્રના પરિગુણનની બહારના વિષયમાં પોતાના મનને જતા ॐ भने पोताना भनने तयात्रि३५ घममा परीवे मानते 'धम्ममग्गे" धर्मभनव तया "अविमणे" भविमन-म२म, नीम माहिमा प्रातिमा
पू.८०