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प्रश्नथावरण भणेज्ज, कोहग्गिसपलितो, तम्हा कोहो न सेवियन्यो। एव खंतीइ भाविओ भवइ अंतरप्पा सजयकरचरणनयणवयणो सूरो सच्चज्जवसंपन्नो ॥ सू० ५॥
टीम-पीय 'द्वितीया भाननामह-कोहो' प्रोध' समादिशान्तिअक्षातिपरिणतिम्पो 'म सेविययोन सेवितव्य । कय न सेरितन्यः? इत्या -'कुद्धो' क्रुद्धाकोधयुक्तः, 'चडपियो' चाण्डिस्थित' पाण्डित्य-रौद्ररूपत्वं सनातमस्य चाण्डिस्थित. रौद्ररुपयुक्त 'माणुमो मानुप 'अलिय ' अलीकम्असत्य 'भणेज्न' भणेत् भाषेत, तथा-'पिमुण' पिशुन-परदोपसूचक वचन भणेत् , 'फरुस' परुप-परमर्मोद्धाटक भणत् , तथा-'अलिय पिमुण फरुस' अलीक पिशुन परुपमेतलितयमपि भणत् । तरा-लाम्मायुद्ध 'करेन' कुर्यात् , 'वेर' और शत्रुता 'करेन' कुर्यात् , 'विगह ' विस्था-विगतार्था
अय सत्रकार को पनिग्रहरूप द्वितीयभावना को प्रकट करते हैं'वीय कोहो' इत्यादि,
टोकार्थ-मोध निग्रहरूप जो द्वितीय भावना है उसमे (कोहो न सेवियव्यो) फ्रो का सेवन नहीं किया जाता है। क्यों कि जो (कुरो मणुसो) क्रोधयुक्त पुरुप होता है यह (चडकिओ) रौद्ररूप से युक्त बन जाता है। ऐसा मनुष्य ( अलिय भणेज ) झूठ बोल देता है (पि सुण भणेज्ज) पर के दोपो के सूचकवचन पोल देता है (फरूस भर्णन ) दूसरों के मर्मको छेदने वाले वचनों को कर देता है, तथा (अलिय पिसुण फरूस भणेज ) अलीक, पिशुन और पाप, इन तीनों तरह के वचनों का भी प्रयोग कर देता है । (कलह करेज्ज ) परस्पर मे वाग्युद्ध
હવે સૂત્રકાર કોનિગ્રહરૂપ બીજી ભાવનાનું સ્પષ્ટીકરણ કરે છે "बीय कोहो" त्याहि
बोधनिय३५२ मील लानातभा “कोहो न सेविय व्वो" औधनु सेवन न २ नये १२५५ है "कुद्धो मणुमो" औधी पुरुषा डाय छ तया“चडकिओ" शैद्र३५पास सनी लय छे मेवो भव्य " अलिय भणेज्ज" भू माली नाणे “ पिसण भणेज्ज" मीनना air दर्श क्या माली नामे छे “फरुस भणेज्ज " on aiना भमन छ ना। वयना माली नय छ, तथा “ अलिय पिसण फरस भणेज्ज" असत्य પિશન અને પરુષ, એ ત્રણે પ્રકારના વચનોને પ્રયોગ કરી નાખે છે “દ