________________
सुदर्शिनी टीको अ० २ सू० ८ पञ्चमीभावनास्वरूपनिरुपणम् हासं, अण्णापणजणिय च होज्ज हासं, अण्णोण्णगमणं च होज मम्म,अण्णोण्णगमणं च होज्ज कम्म कदप्पभिओगगमण घ होज्ज हासं, आसुरिय किव्विसत्तण च जणेज्ज हास, तम्हा हास न सेवियव्व । एव मोणेण य भाविओ भवइ, अतरप्पा सजयकरेंचरणनयणवयणो सूरो सच्चज्जवसपन्नो ॥ सू० ८॥
टीफा-'पचम 'पञ्चमी भारनामाह-' हास' हास्य नोकपायमोहोदयात्सनिमित्तमनिमित्त पा विवृतवर्णपुरस्सर मुखव्यादान हास्यम् , न 'सेवियच' सेषितव्यम् । किमर्थ न सेरितव्यम् ? इत्याह-'हासडत्ता' हासयितार.-परिहासकारिण 'अलियाइ ' अलिकानिन्सद्भूतार्थगोपनरूपाणि 'असतगाइ' असत्कानि
अय सूत्रकार पचमी मौन भावना को कहते है-'पचम , इत्यादि ।
टीकार्य-(पचम) पाचवी मौन भावना इस प्रकार है। (हास न सेवियन्य ) इस भावना में हास्य के सेवन का परित्याग कर दिया जाता है । जब जीव को हास्यनो कपाक मोह का उद्य होता है तव वह हास्य का निमित्त मिले अथवा न भी मिले तो भी वह ही. ही करता हुआ हसने लग जाता है । हँसते समय उसका मुख खुल जाता हैं दात स्पष्ट दिखलाइ देने लगते है। सयमी जन को इस हास्य का सेवन नहीं करना चाहिये । क्यो कि (हासइत्ता) जो परिहास करने वाले व्यक्ति होते है वे ( अलिअइ असतगाइ जपति ) सद्भुत
वे सूत्रा२ पायभी भीनमापन पता —“ पचम" त्या
टा--" पचम" पायभी भीनमापना . प्रमाणे छ-"हास न सेवियन" मा भावनामा स्यनो परित्या राय छे न्यारे ने 'हास्य नोकपाय' भीडन। मध्य थाय छे त्यारे त हास्यनु निमित्त भणे न भणे છતા પણ તે “હી-હી” કરતો હસવા મડી જાય છે હસતી વખતે તેનું મુખ ઉઘડી જાય છે અને દાત સ્પષ્ટ રીતે દેખાય છે સયમી જને આ હાસ્યનું सेवन २ नये नही २५ “ हासइत्ता"२ परिहास ४२ना२ व्यति डेय ने " अलिआइ असतगाई जपति" याथः सथन छावना सन