________________
६९९
सुदर्शिनी टीका अ०२ सू०७ चतुर्थीभावनास्वरूपनिरूपणम् तपः सयम चापि 'मुएज्जा' मुञ्चति-परित्यजति । तथा-भीतः 'भर 'भारम्
कार्यभार 'न नित्थरेजा' न निस्वारयति-न निहियति । तथा-'सप्पुरिसनिसेविय' सत्पुरुपनिपेवित च ' मग्ग' मार्ग भीतो न 'ममत्यो' समर्थः = पर्याप्तः ' अणुचरिउ ' अनुचरितुम् , सत्पुरुपासेपित मार्ग भयत्रस्तो न गन्तु शक्नोतीति भार । ' तम्हा' तस्माद् हेतोः 'भयस्स वा' भयस्य-भीते , 'वाहिस्स ' व्याधेः क्रमेण माणापहारिणः कुष्ठादे , ' रोगस्स' रोगस्यशीघ्रतया प्राणापहारिणो ज्वरादे वी 'जराए' जरायाः वा मच्चुस्स' मृत्यो र्वा ' अन्नस्स' अन्यस्य एभ्य इतरस्य वा 'एमाइयस्स' एवमादिकस्य-एव बना देता है, तया (भीओ तवसजम पिहुमुएज्जा) वह तप सयम का भी परित्याग कर देता हैं । ( भीओ य भर न तित्यरेडजा) भीत मनुष्य शक्ति से इतना अधिक विहीन बन जाता है, अर्थात् उसमें इतनी अधिक मानसिक दुर्बलता आ जाती है कि जिसकी वजह से वह किसी भी कार्यभार को वहन नहीं कर सकता, अर्थात् किमी भी काम को वह पूरा नहीं कर सकता। (सप्पुरिमनिसेविय च मग्ग भीओ न समत्थो अणुचरिउ) सत्पुरुप जिस मार्ग का सेवन करते आये हैं उस मार्ग पर चलने के लिये भी वह पिचारा समय नहीं हो सकता है। (तम्हा न भीइयव्य भयस्स वा वाहिस्स वा रोगरस वा जराए वा मच्चुस्स वा अन्नस्स वा एवमाइयस्स) इसलिये कीसी भी प्रकार के भय के, क्रम २ से प्राणों को अपहरण करनेवाली व्याधि के, अथवा कष्टादिके, शीघ्रता से प्राणो का अपहरण करनेवाले ज्वर आदि रोग के, वृद्धावस्था के, तथा मृत्यु के अथवा इन्ही जैसी अन्य और कोई तवसजम पिहुमुएन्जा" ते त५ सयभनी ५ परित्याग रीछ "भीओ य भर न तित्थरेजा" यमीत भालो सरकाधा शतडीन /, अटले तेनामा એટલી બધી માનનિક દુર્બળતા આવી જાય છે કે જેના કારણે તે કઈ પણ કાર્યને બોજો ઉઠાવી રાતે નથી એટલે કે કોઈ પણ કામને તે પૂરૂ કરી શકતો નથી "सप्पुरिसनिसेविय च मग्ग भीओन समत्यो अणुचरिउ"सत्पुरुषार भागनु सेवन કરતા આવ્યા છે, તે માર્ગે ચાલવાને પણ તે સમર્થ બની શકતું નથી " तम्हा न भीइयव्य भयस्स वा वाहिस्सवा रोगस्स वा जराए वा मच्चुरस वा अन्नरस वा एवमाइयस्स" तेथी दो पY प्रा२ना मयथा, भे उभे प्राणाने હરી લેનાર વ્યાધિના, અથવા નુષ્ઠાદિના, શીવ્રતાથી પ્રાણ હરી લેનાર જવર આદિ રેગ્ન, વૃદ્ધાવસ્થાના તથા મૃત્યુના અથવા તેમના જેવી કોઈ પણ પ્રકા