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सुदशिनी टीका अ० २ सू० १ सत्यस्वरूपनिरूपणम्
६५३ दोना, अमरवलपताम्-वासुदेवभतिवासुदेवादि योद्धृपुरुपाणा, तथा-मुविहितजनाना-महापुरुषाणा च बहुमत समत यत्तत् , तथा-' परमसाधम्मचरण ' परमसाधुधर्मचरणम्=परमसाधूना = उत्कृप्टक्रियावां मुनीना धमचरणधर्मानुष्ठान यत्तत् , तथा-'तवनियमपरिग्गहिय' तपो नियमपरिगृहीतम्-तपो नियमाभ्या परिगृहीतम् अङ्गीकृत यत्तत्तथा, तपोनियमौ हि सत्यमादिनामेव भवतो नेतरेपाम् , तथा-'मुगउपपदेमग' मुगतिपथदेशक-मुगतेः पन्था. मुगतिपय , तस्त्र देशकम् , प्रज्ञापकम् , च-पुन. ' इण ' इट ' लोगुत्तम' लोकोत्तम लोकेपु-लोकत्रयेपु उत्तम श्रेष्ठम् ' वय' व्रतम् अस्ति । तथा-उद सत्यवचन 'पिज्जाहरगग णगमणपिज्जाण' विद्याधरगगनगमनविद्याना-रियाधराणा या गगनगमननिद्यास्तासा ' साहग' सापक-सत्यवादिनामेव विद्याः सिध्यन्तीत्याशन , तथा'सग्गमग्गसिद्धिपहदेसग' सर्गमार्गसिद्धिपधदेश स्वर्गमार्गसिद्विपथयोर्देशक निर्देशन यत्तत्तथा, तथा-' अपितह ' अवितथ-मिथ्याभावरहित यत् 'त' तत् चक्र आदि श्रेष्ट पुरुपों को, बलदेव, प्रतिवासुदेव आदि सुभटयोद्वाओ को और मापुस्परूप सुविहितजनों को यहुमान्य हुआ है। (परसाधम्मचरणतयनियमपरिग्गहियलुगहपदेसग च इण लोगुत्तम च वय ) उत्कृष्ट किया शाली मुनिजनो का यह धर्माचरण-धर्मानुष्ठान है । तथा-तप और नियमों से ये परिगृहीत होना है-अर्याततप और नियम सत्यवादी के ही होते है । इतर जीवों के नहीं।सगति के पथ का पर प्रज्ञापक-निर्देशक होता है। और तीनो लोको में यह सत्यवचन श्रेष्ठ व्रत है। तधा-यह सत्यवचन (विज्जाहरगगण-गमण. विज्जाणसाग) विद्याधरों की गगन में गमन करने वाली जो विद्याएँ है उनका साधक है। (सग्गमग्गसिद्धिपहढेसग) स्वर्ग के मार्ग का और सिद्वि के पथ का प्रदर्शक है। (अवितह ) अक्तिय-मिथ्याभाव ચક્રવર્તી આદિ શ્રેષ્ઠ પુને વાસુદેવ, પ્રતિવાસુદેવ આ િસુભટને અને મહાपु२५ युविहिन बनाने मई मान्य छ “परसाहुधम्मचरणतवनियमपरि. माहिमुगइपहदेसग च इण लोगुत्तमं च वय" श्रेष्ठ जियाजी मुनिनानु તે ધર્માચરણ-ધર્માનુષ્ઠાન છે તથા તપ અને નિયમથી તેઓ પગૃિહીત થાય છે–એટલે કે તપ અને નિયમ સત્યવાદીઓ માટે જ શકય હોય છે અને માટે નહીં સુગતિના માર્ગનું તે પ્રજ્ઞાપક-નિર્દેશક હોય છે, અને ત્રણે લોકમાં
। सत्य नयन श्रे० प्रत छ तथा मा मत्यवयन “विज्नाहारगगणगमण पिज्जाण साहग" विधायशनी मामा गमन ४२वानी २ विधामा छ, तेभनु साधः छे “सग्गम गसिद्धिपदेसग" म्वना भार्गनु छ