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___ प्रमध्याकरण वा, विभक्तयः स्वादयस्तिरादयश, वर्णाः = कादयः, गिर्युक्त तिकल्ल' त्रैकाल्य-त्रिकालविषय 'दसनिह पि' दशविधमपि जनपदादिरूप 'सर्च' सत्य वक्तव्यम् । तथा यत्सत्य 'जह 'पया येन प्रकारेण 'मणिय ' भणितम् उच्चारित 'तह य ' तया च तेनैव प्रकारेण 'कम्मुणा' कर्मणापि-कार्येणापि परिणत ' होइ ' भाति, तत्सत्य वक्तव्यमिति मारः, तथा-'दुवालसविहा' द्वादशनिधा-माकृत सस्कृतमांगपिशाचसौरसेनोपभ्रममदातू पइपिया, सा पुन: गद्यपद्यभेदाद् द्विविति द्वादशविधा 'मासा' भाषा मोइ' भरति, तथा'वयण पि य पचनमपि च 'होइ' भाति 'सोलमविह' पोउधित्वमेव विज्ञेयम् - अकार आदि शब्द, अथवा पडज आदि स्वर स्वर कहलाते हैं। 'सु, औ, जस, आदि विभक्तिया तथा 'तिप्, तम, भी' आदि प्रत्यय ये सप विभक्तियां कहलाती हैं, और कनर्ग आदि वर्ग करलाते हैं। (जह भणिय तह य कम्मुणा होइ) तथा जो सत्य जिस प्रकार से कहा गया है वह सत्य उसी प्रकार से कार्य से भी परिणत हो जाता है ऐसा सत्य योलना चाहिये। तात्पर्य इसका यह है कि जिस सत्य को, योलने वाला व्यक्ति कार्य रूप में परिणत कर सके ऐसा सत्य बोलना चाहिये। (दुवालसविहा होइ भासा) भापा वारह प्रकार की होता है-वह इस प्रकार से प्राकृत, सस्कृत, मागधी, पैशाची, सौरसेनी और अपभ्रश । यह छहों प्रकार की भाषा गद्य और पद्य के भेद से घारह प्रकार की हो जाती है। ( वयण पिय रोइ सोलसविर) वचन के सोलह प्रकार होते हैं, वे इस प्रकार से है१२ मा श६ २५44 पडूज माहि १२२ १२ १ छ, “सु, औ, जस्" माहि विमतियो तथा “ति तसू झी" मा प्रत्यय से सौने वित्तिये। ॐ छ, ( शुभरातीमा स, ने, थी, नी, नी, नु, ना, मी माह विनातिना प्रत्यया छ) भने 'क ख' मा १ उपाय छ "जहभणिय तहय कम्मुणा होइ" तथा सत्य २ सारे उपायु डाय ते सत्य तारे કાર્યમાં પણ પરિણમતુ હોય તેવુ સત્ય બોલવું જોઈએ, તેનું તાત્પર્ય એ છે કે જે સ યને બેલનાર વ્યક્તિ કાર્ય રૂપે અમલમાં મૂકી શકે તેવું સત્ય मोसनेमे, “दुवालसुविंहा होइ भासा " सा! मा२ प्रजानी डाय छे તે આ પ્રમાણે છે-પ્રાકૃત, સંસ્કૃત, માગધી, પૈશાચી, સૌરસેની, અને અપભ્રંશ આ છ પ્રકારની ભાષા ગદ્ય અને પદ્યના ભેદથી બાર પ્રકારની થઈ જાય છે, "यण पिय होइ सोलसविह" क्यनना सो प्रा२ हाय छे. ते नीय प्रमाणे छ