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प्रश्नध्याकरणसूत्र 'अत्तहिय ' आत्महितम् आत्मना जीना हित-हितकारणात् , 'पच्चाभाविय' मेत्यभाविक-प्रेत्य = जन्मानरे भाति-शुभफरतया परिणमतीत्येव शीलम् , तथा-' आगमेसि भद्द' आगमि यद् भद्रम् गाविल्याणजनम्म् 'सुद' शुद्ध-निर्दोपम् 'नेयाउय' नयायिक-न्याययुक्तम् 'अरुढिलं' अकुटिलम् ऋजुमोक्षमापकत्वात् , 'अणुत्तर 'अनुरारम्-सर्वप्रधानत्वात् , तथा-'सबदुक्खपावाण' सनदुःखपापाना ' पिउसमण ' ब्युपगनम्-उपगमकारकमिद प्रवचनमिद मवचनमिति पूर्वेण सम्बन्ध ॥ ०५॥ महावीर ने कहा है-इन कधन में किसी भी तरह से युक्ति और गाला से पाधा नहीं आती है । (अत्तरिय ) यर जीनों का हितकारक है और (पेचाभाविय) परमर में शुभ फलरूप से यह परिणमता है। इसीलिये (आगमेसिभ६) भविष्यकाल में यह कल्याणजनक है। (मुध्ध) भगवान द्वारा प्रतिपादित होने के कारण इसमें किसी भी तरह से कोई पूर्वापरविरोधरूप दोप नही आता है-इसलिये शुद्धनिर्दोप है, तथा (नेयाज्य) न्याययुक्त है । ( अडिल ) इसकी आरा धना करने से जीव मोक्ष को प्राप्त करलेते है इसलिये वह अकुटिलऋजु है । ( अणुत्तर) समस्त सिद्धा तों में इसकी प्रधानता होने से यह अनुत्तर है । तथा (सचदुस्तपावाणविउसमण) समस्त दुखों का और पापों का यह उपशमकारक है।
भावार्थ--सूत्रकार इस सूत्र द्वारा यह प्रकट कर रहे हैं कि जो अहिंसारूप सवरद्वार को पालन करने के लिये उद्यत हैं उनका यह ભગવાન મહાવીરે કહેલ છે–આ કથનમાં કઈ પણ પ્રકારે-યુક્તિ અને શાસ્ત્રથી पाधी मापता नथी “ अत्तहिय "
त नु निता छ भने "पेच्चा भाविय" ५२१मा शुल १३ ते परिणमे छ तेथी " आगमेसिभ " भविष्यमा તે કલ્યાણજનક છે “સુદ્ધ” ભગવાન દ્વારા પ્રતિપાદિત હોવાથી તેમાં કોઈ પણ પ્રકારે કોઈ પૂર્વાપર વિવરૂપ દેય આવતો નથી તેથી શુદ્ધ-નિર્દોષ છે, तथा " नेयाउय " न्याययुस्त छ “ अकुडिल " तेनी माराधन। ४२पाथी ७१ भाक्षने पास ४२ छ ते १0 ते अकुटिल- छ, ( अणुतर) समस्त सिद्धान्तमा भुस्य वाथी ते अणुत्तर -सर्वोत्तम छ तथा "सत्वदुक्खपावाण विउसमण "सभरतमो तथा पाषानु ते शमन उ२ना२ छ
ભાવાર્થ-સૂત્રકાર આ સૂત્ર દ્વારા એ પ્રગટ કરે છે કે જેઓ અહિંસા ઉપ સવરદ્વારનું પાલન કરવાને તત્પર છે, તેમનું એ કર્તવ્ય છે કે_છકાયના