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सुदर्शिनी टोफा अ०१ सू०६ भावनास्वरूपनिरूपणम्
६२१ नायज्ञातव्या भवन्ति, मुनिः प्राणि माणसरक्षणपरत्वात्तानाज्ञा पिपयीकरोतीति भानः, एमनेऽपि सर्वन वाक्यरचना कार्या । 'न निदियवा ' न निन्दितन्या भान्ति-परपीडापर्जनपरत्वात् , 'न गरहियव्या' न गर्दितव्याः भान्तिलोकसमक्ष दोपोद्घाटनपूर्वक गाविषयभृता न भवन्तीत्यर्थः, तथा-'न हिंसि यन्ना' न हिसितव्याः-पादाक्रमणादिना न हन्तव्याः, भवन्ति, एव 'न छिदि यव्वा' न उत्तव्याः खगादिना, 'न भिदियघा' न भेतव्याः - कुन्तादिना, 'न वहेयन्या 'न व्यथनीयाः पीडोत्पादनादिना भवन्ति । तथा – 'न भय दुक्ख च लभा पावेउ'न भय दुख च लभ्याः प्रापयितुम् , दुःख भय च प्राप यितु योग्या न भवन्तीति भावः । एवम् अनेन प्रकारेण 'इरिया समिइजोगेण ' ईर्यासमितियोगेन 'भानिओ ' भावितोपासितो भवति 'अतरप्पा' अन्तरात्मा
जीव', स भारितात्मा-भवतीत्यर्थ , कीरगो भाति ? इत्याह-'असवलमसफिलिहनियणचरित्तभाषणाए' अशनलासरिट निर्मणचारित्रमावनयाः, अशवलाकच्या) निंदा के विषयभूतनहीं बनते हैं। ( न गरहियच्या ) लोगों के समक्ष दोपोद्धाटन पूर्वक गर्दा के विषयभून नहीं बनते ह । (न हिलियव्या) पादादि द्वारा आक्रमिक होकर हिंसा के विपयभृत नहीं बनते है, (न बिंदियया) छेदन करने के विषयभून नही बनते है, (न भिदिय व्वा) भेदन करने के विपय भूय नहीं बनते ह । (न-वहेयव्वा) पीडो त्पादनादि द्वारा व्यथा कष्ट पहुंचाने के योग्य नहीं बनते है। (न भय दुक्ख च किंचि लम्भा पावेउ) और न किसी भी तरह से भय और दुख को प्राप्त कराने के योग्य निते है। (एन) इस प्रकार (ईरियाममियजोगेण ) ईर्या समिति के योग से (भाविओ अतरप्पा) वासित हुआ अन्तरात्मा-जीव-भावितात्मा कहलाता है और यह(असवलमसकिलिनिव्वण चरित्त भावणाए ) अगरल-मलिनता रहित सभात प्राn "ण हीलयव्या' अवज्ञान विभृत मनता नथी । न निदियत्रा' निहाना विषयाभूत गनना नथी, “ न गरहियवा" सोनी समक्ष दोषीद्धाटन मना विपत्मृत पनता नथी “न हिंसियचा " पहाडे २माभित थईन साना विषयाभूत गनत नयी, "न छिदियव्या" न ४२वाना विषयभूत मनता नथी, “न भिदियव्वा" लेन रवाना विषयभूत मनता नथी, “न चहेयव्या” ची पाहन माहि द्वारा व्यथा पायावाने योज्य मनता नथी “न भय दुक्स च किचिलमा पावेउ" भने छ । मारे लय भने म प्राप्त उपाने योग्य मानता नया ' एव " मारे ॥ ईरियासमियनोगेण" यसमितिना योगयी “भाविजो अतरप्पा" युत
मी-09-मावितात्मा उडेवाय छ भने ते “असरलमसफिलिनियणचरित