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प्रध्यापन विश्रामस्थानम् । तथा- दुइद्वियाण च भोसहिरल' दुःवस्थितानाच ओपधिवलम्-रोगग्रस्ताना प्राणिना कृते थथोपधम् - थैर धर्मरोगग्रस्ताना कृतेऽस्मिाष धम् , तथा अडगीमझे च सत्वगमण' अटवीमध्ये दस सार्थगमनम्-यया-अटवीमध्ये सार्थेन सहगमन सुखकर माति, तथैमासमार्गमस्थितानामहिंसा, किम धिकम् ? 'एत्तो' इतः एभ्यः पूक्तिभ्योऽपि अहिंसा 'रिसिहतरिया' रिशिष्ट तरिकाविशिष्टतरा । 'जासा' या साहिंसा 'पुढयो-जल अगणि-मारुय वगस्साबीय-हरिय-जलचर-थलचर-खहयर-तस-धार-सत्रभूय-खेमकरी' पृथिवीजलाग्नि मारुत-वनस्पति-गोन-उरित-जलचर-स्थलवर खेचर उस स्थावरसर्वभू तक्षेमकरी। पृथिव्यादिपट्कायनीगना कल्याणकारी परीपति दयाभगाती ॥४॥
अहिंसा ही एक परम औय पीरूप है। (अडोमझे वसत्वगमण) जगल के बीच में जिस प्रकार सार्थ-समुदाय के साथ चलना मुखप्रद होता है उसी प्रकार मोक्षमार्ग में प्रस्थित हुए मनुष्य को यह अहिंसा है अर्थात्-साथ का काम देती है । और अधिक क्या कहें- ( पत्तो) इस पूर्वोक्त उपमानों से भी (विसिहनरिया ) अहिंसा विशिष्टतर है। क्यों की (जा सा अहिंसा) यह जो अहिंसा है वह (पुढवी जलअगणि-मारुय-वणस्सइ-बीय-हरिय-जलचर थलचर खयर तस थावर सव्वभूयखेमकरी) पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, बीज, हरित, जलचर, थलचर, खेचर, बस और स्थावर इन सय भूतों की-पृथिव्यादि छह काय के जीवों की-कल्याणकरी-रक्षा करने वाली है।
भावार्थ-इस अहिंसा भगवती के समक्ष ससार के सभी विशिष्ट जड पदार्थ तुच्छ है । क्यों कि उनसे जीवो की यथार्थरूप में रक्षा नहीं भाट अडिसा भाटा मोष५३५ छ “अडवीमज्ञ वसश गमण । म જ ગલની વચ્ચે સાર્થ–સમુદાયની સાથે જવાનું સુખકારી હોય છે તે જ પ્રમાણે મેક્ષ માર્ગે પ્રયાણ કરતા મનુને સાટે અહિંસા સાથેની ગરજ સારે છે qधारे शु । एत्तो" पूर्व प्रथित पभाना २ता पy 'विसिद्वतरिया" महिंसा मधित२ छ धारण "जा सा अहिंसा" मा अहिंसा छे ते " पुढवीजलअगणि-मारुय-वणस्मइ-वीय -हरिय-जलयर- सहयर - तस-थावर सबभूय- सेमकरी' पृथिवी, ra, मशि वायु बनस्पति, पी, रित, જલચર, થલચર, ખચર, રસ, અને સ્થાવર તે બધા ભૂતની પૃથિવ્યાદિ છ કાયના જીવોની કલ્યાણકારી-રક્ષા કરનારી છે
ભાવાર્થ-આ ભગવતી અહિંસાની આગળ એ સારના સઘળા વિશિષ્ટ જડ પદાર્થો તુચ્છ છે કારણ કે તેમનાથી યથાર્થ રીતે જીવોની રક્ષા થતી નથી જે