________________
५८०
प्रश्नध्याकरणम्
संमति अहिंसामाहात्म्यमाद
मूलम्-एसा भगवई अहिंसा, जा सा भीयाणं पिव सरणं पक्खीणं पिव गयण, तिसियाणं पिव सलिल, खुहियाणं पिव असणं, समुदमझेव पोपवहण, चउप्पयाण च आसमपय, दुहट्रियाण च ओसहिवल, अडवीमज्झे च सत्थ. गमण, एत्तो विसिट्टतरिया अहिसा जा सा पुढवीजल अगणि मारुयवणस्सइ - वीय - हरिय -- जलचर--- थलचर-खहयर तस-थावर-सव्वभूयखेमकरी ॥ सू० ३॥
टीका-सा भगवई ' इत्यादिएपा-जिनशासनप्रसिद्धा-अहिंसा भगाती या सा 'भोयाण पिन सरण' भीतानामिव शरणम्-भय भीताना प्राणिना वाणाथ गृहमिवास्ति, 'पक्खीणपिच गयण' पक्षिणामिव गगनम्=पक्षिणा गगनमिव, यथा पक्षिणा गमने गगनमाधारो भवति, तथैव सर्वधर्माणामियमहिंसाऽऽधार । 'तिसियाण पिव सलिलम्=
अब सूत्रकार इस अहिंसा के माहात्म्य को प्रदर्शित करते है'एसा भगवई ' इत्यादि ।
टीकार्य (एसा) जिनशासन मे प्रसिद्ध यह (अहिंसा भगवई) अहिंसा भगवती (जा सा) जो वह अहिंसा (भीयाण पिव सरण) भयभीत हुए प्राणियों की रक्षा करने के लिये घर जैसी है। ( पक्खीण पिव गगण ) तथा जिस प्रकार पक्षियो को गमन करने मे ओधारभूत आकाश होता है उसी तरह समस्त धर्मो की आधारभूत यह अहिंसा ही है। (तिसियाण पिव सलिल) जिस प्रकार तषित व्यक्तियों की वे सूत्र४२ २५ अडिसानु मान्य शवि --" एसा भगवई " त्यात
"एसा" शासनमा प्रसिद्ध ते" अहिंसा भगवई " अहिंसा माती, "जा सा" “भियाण पिव सण" मयलीत मनेस प्राणीमानी २क्षा ४२ वान भाट ५२ समान छ, “पाखीण पिन गगण " तथा २५ पक्षायाने ગમન કરવામા આકાશ આધારભૂત થાય છે, એ જ પ્રમાણે સમસ્ત ધર્મોને भाट साधारभूत ! महिमा ४ छ, “तिमियाण पिव सलिल "म तर