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सुदर्शनी टीका म० १० ४ हिसाधारकपुरुषस्वरूपनिरूपणम् ५७३ ___ अथ यै महापुरुषैरियमहिंसोपलब्धा सेविता च तानाह-' एसा भगवई' इत्यादि
मूलम्-- एसा भगवई अहिसाजा सा अपरिमिय नाण दसणधरेहिसीलगुण-विणय-तव-सजम नायगेहिं तित्थकरेहि सव्वजगजीववच्छल्लेहि तिलोगमहिएहि जिणचदेहि सुट्ठ दिहा, ओहि जिणेहि विण्णाया, उज्जुमईहि विदिट्ठा विउलमईहि विदिता, पुवधरेहि अधीया, वेउव्वीहि पइ. पणा, आभिणिवोहियनाणीहि सुयनााणीहि मणपज्जवनाणीहि केवलणाणीहि आगोसहिपत्तेहि खेलोसहिपत्तेहि विप्पोसहिपत्तेहि जल्लोसहिपत्तेहि सम्बोसहिपत्तेहि वीयबुद्धिएहि कोवुद्धीहि पयाणुसारीहि सभिण्णसोएहि सुयधरेहि मणवलिएहि वयवलिएहि कायवालएहि नाणवलिएहि दसणवलिएहि चरित्तनलिएहि खीरासवेहि महुआसवेहि सप्पियासवेहि अखीण महाणसिएहि चारणहि विज्जाहरेहि चउत्थभत्तिएहि छहभत्तिपहि दसमभत्तिएहि एव दुवालसचउदससोलस--अद्धमास-मास -दोमास तिमास-चउमासपचमास छम्मासभत्तिएहि उक्खित्तचरएहि एवं निक्खित्त
चरएहि अतचरएहि पतचरएहि लूहचरएहि समुदाणिहोती है। यदि यथार्थरूप मे जीवो की रक्षा करने वाली-अभयप्रदान करने वाली यदि कोई सर्वोत्तम वस्तु है तो वह एक अहिसा ही है ।।सू०३॥
अन सूत्रकार जिन महा पुरुपो ने इस भगवती अहिंसा की प्राप्ति યથાર્થ રીતે જીવોની રક્ષા કરનારી–અભયપ્રદાન કરનારી કોઈ પણ સર્વોત્તમ વસ્તુ હોય તે તે એક માત્ર અહિંસા જ છે કે સૂ-૩
હવે સૂત્રકાર જે મહાપુરુએ આ ભગવતી અહિસાની પ્રાપ્તિ તથા સેવા