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सुदशिनीटीका अ०५ सू० ४ मनुष्यपरिग्रनिरूपणम् ऽवसरो लभ्यते तत् शिल्प ' शिल्पसेवा ' इत्युन्यते, तथा 'असिमसिकिसिवाणिज्ज' असिमपीकृपिपाणिज्यम् असिःखगाभ्यासः, मसि.म्ममिकृत्यमक्षरलेखनादि, कपिः-कर्पगम् , 'वाणिज्न' राणिज्यम्-वणिर्म, एतेपा समाहारद्वन्द्वः, तत् ' ववहार 'व्यवहार-व्यवहारशास्त्रम् , तथा ' अत्यसत्य' अर्थशास्त्रम् , अर्थोंपायप्रतिपादक कौटिल्याईस्पत्याधशास्त्रम् , 'मुसत्य' इपुगास्त्रम्-मनुर्वेद 'च्छरुप्पगय ' सरुमगत खद्गमुष्टिग्रहणोपाय, तो 'विविहाओ' विविधाः 'जोगजुजणाओ य' योगयोजनाव-वगीकरणादिप्रयोगाश्च शिक्षते । तथा हुए है सीखते है। तया (सिप्पसेव ) ऐसी शिल्प विद्या को सीखते है कि जिसके बल पर उन्हें राजा की सेवा करने का अवसर प्राप्त हो जाता है। तथा असि, मपी, कृषि एव वाणिज्यव्यापार, (ववहार ) व्यवहार शास्त्र इन कर्मो को सीखते है | तलवार वगैरह अस्त्र शस्त्रादि से आजीविका चलाना इसका नाम असिकर्म है। लेखन आदि करके जीवन निर्वाह करना इसका नाम मपीकर्म है । खेती किसानी करके जीविका चलाना इसका नाम कृपिफर्म है। पापार धदा करना इसका नाम वाणिज्य कर्म है। जिससे लोक व्यवहार चलता है वह व्यवहारशास्त्र है। परिग्रही जीव ( अत्यसत्य ) अर्थशास्त्र का भी अध्ययन करते हैं । इस अर्थ शास्त्र के प्रणेता कौटिल्य, बृहस्पति आदि हुए हैं। इसके अध्ययन से व्यापारिक क्षेत्र में व्यापारियों को पैसेकी आयके साधन कैसे२ क्यार होते हैं इस सब विपय का बोध हो जाता है। इसी परिग्रह की ममता से जीव (इसुसत्य) धनर्वेद को (छरुप्पगय) तलवार आदि के चलाने (की कला को तथा (विविहाओ जोगजुजणाओ) वशीकरण आदि
તેમને રાજાની સેવા કરવાની તક મળે તથા અસિ, મલી, કૃષિ અને વાણિજ્ય व्यापार, ववहार " व्यपार मात्र कोरे आर्या शी छे तसा२ मा અસ્ત્ર શસ્ત્રાદિથી નિર્વાહ ચલાવવી તેનું નામ અસિકમ છે, લેખન આદિ કરીને જીવન નિર્વાહ ચલાવે તેનું નામ મલીકર્મ છે ખેતી કરીને નિર્વાહ ચલાવી તેનું નામ તુષિકર્મ છે વ્યાપાર રોજગાર કરે તેનું નામ વાણિજ્ય કર્મ છે જેનાથી લેકવ્યવહાર ચાલે છે તે વ્યહારશાસ્ત્ર છે પદિગ્રહી જીવ " अत्थसत्य " अर्थशास्त्रनु ५ अध्ययन रे छे ते अर्थशास्त्र प्रता કૌટિલ, બૃહસ્પતિ આદિ થયા છે તેનો અભ્યાસ કરવાથી વ્યાપારના ક્ષેત્રમાં પૈસા કમાવવાના સાધને કેવા કેવા હોય છે, અને ક્યા કયા હોય છે એ બધી બાબત વેપારીઓને જાણવા મળે છે એ જ પરિગ્રહની મમતાથી જીવ " इसुसत्थ " धनु , " छरुप्पगय" तलवार माहि पापपानी , तथा