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सुवशिनी टीका अ० १ २०२ प्रथमसंवाद्वारनिरूपणम्
५६१ स्थानम् , 'गई 'गति गम्यते-मोक्षार्थिभिराधीयते इति गतिः= प्राप्यम्थान तथा-' पट्टा' प्रतिष्ठा प्रतिष्ठन्ते-आसते यस्या सर्वे गुणा सा प्रतिष्ठा-सर्वगुणा नामाधारस्सम्पा। साम्प्रतमहिंसायाःगुणनिप्पन्नानि पष्टिनामान्याह 'निव्याण' इत्यादि-'निव्याण' निर्वाण-मोक्षः, तद्वेतुत्वात् १, 'नियुई 'निवृति'-स्वास्थ्यम्-कर्मव्याधिनजितत्वात् २, 'समाही' समापि =समता, समभानहेतुत्वात् ३, 'सती' शान्तिा ड्रोहवर्जितत्वात् ४, 'फित्ती' कीतिः यशः तद्धेतुत्वात् ५, को यह एक उत्तम आश्रय स्थान रूप है । तया (गई ) जो मोक्ष के अभिलाशी जीव है वे इसका आश्रय करते है इसलिये उनकी अपेक्षा यह गतिरूप है । तथा ( पडट्ठा ) समार में जितने भी सदगुण है उन सप की प्रतिष्ठा-आधारभूत यही एक अहिंसा है, इसके अभाव में अन्य विद्यमान सद्गुणो की प्रतिष्ठा-कीमत-नहीं होती है। अब सूत्रकार इस अहिंसा भगवती के गुण-निम्पन्न साठ नामो को करते है। उनमें पहिला नाम(निव्वाण) निर्वाण-मोक्ष है । क्यों कि यह उमकी हेतुभून होती है १ । दूसरा नाम इसका (निब्चुई ) निवृत्ति है, निवृत्ति शब्द का अर्थ स्वास्थ्य है- कर्मों के आत्यतिक अभाव होने से ही जीवों को प्राप्त होता है २।अहिसा का तीसरा नाम (समाही) समाधि है, समाधि का अर्थ समता है, यह अहिंसा मम माव की कारण होती है इसलिये कारण में कार्य के उपचार से इसे स्वय समाधिरूप कह दिया है ३ । अहिंसा का चौथा नाम (सति) शान्ति है, क्यो कि जहा द्रोह भारत से माश्रयस्थान३५ छ तथा " गई" मारना मलिदापी रे જીવે છે તેઓ તેને આશ્રય લે છે, તેથી તેમની અપેક્ષાએ તે ગતિરૂપ છે, तथा " पइटा" समारमा रेसा सशु छे ते मधाना आधार ३५ मा मे અહિંસા જ છે, તેના અભાવે બીજા વિદ્યમાન સદ્ગુણોની કોઈ પ્રતિષ્ઠા-કિંમત થતી નથી હવે સૂત્રકાર આ અહિંસા ભગવતીના ગુણ પ્રતિપાદિત સાઠ નામ सतावे छे तमा पच्यु नाम "निव्याण" निyि-मोक्ष २५ ते तना
२४३५ डाय छे (१) तेनु पाणु नाम “ निभुई" नित्ति छ, निति શબ્દનો અર્થ સ્વાધ્ય થાય છે-કર્મોને અત્યત અભાવ હોવાથી તે જીવને थाय (२) मडिसानु त्रीतु नाम " समाही " समाधि छ, समाधिनी मथ સમતા છે, આ અંહિસા સમભાવનુ કાણુ હોય છે તેથી કારણમાં કાર્યના ઉપચારથી ते स्वयं ममाधि३५ अपामा मावेस छे (3) अहिंसानु याथु नाम "सती" શાનિત છે, કારણ કે જ્યા દ્રોહને અભાવ હોય છે ત્યાજ શાત હેય છે અહિં