________________
५६२
प्रमध्याकरणसू 'कती' कान्तिा प्रसन्नता तदेतत्वात् ६, 'रई य' रतिः आनन्दस्तज्जनयत्वात् ७, 'विरई य' चिरतिः-चिरागः सारयकमार्जितसात् , सुयग' श्रुताहातश्रुतज्ञानाग कारण यस्याः सा तथोक्ता, उक्तमपि-" पढम नाण तओ दया" इति ९, 'तिनी' तिः सतोपः सर्वप्राणिसतोषजनाचात् १०, दया-माणिरक्षाउपमर्दनपर्जितस्वात् ११, 'निमुत्ती' विमुक्ति -चिरुन्यन्ते प्राणिनः सकलययका अभाव होता है वहीं शाति होती है, अहिंसा में द्रोह का लेश भी नहीं होता है, इसलिये इसे शाति शब्द से व्यवहृत किया गया है ४ । (कित्ती) यशकी हेतुभूत होने से इसका पांचवां नाम कीर्ति है। अहिंसक जीव की कीर्ति का सर्वत्र विस्तार रोता है यह यात सुप्रसिद्ध ही है ५। (कती) प्रसन्नता की हेतुभूत होने से इसका नाम कान्ति भी है ६ । (रई च) आनन्द की उत्पादक होने से इसका नाम रति है ७ । (चिरई य) सावद्यकर्मो से वर्जित होने के कारण इसका नाम विरति भी है ८ । (सुयग) इस अहिंसा का कारण तज्ञान होता है इसलिये इसका नाम श्रुतान है । क्योकि ऐसा कहा है कि पहिले ज्ञान होता है बाद में दया ९। (तित्ती) समस्त प्राणियों के लिये यह सतोष जनक होती है इसलिये इसका नाम तृप्ति है १० । इस अहिंसा में प्राणियों की रक्षा होती है इसलिये प्राणियो के प्राणों के उपमर्दन कृत्य से रहित होने के कारण यह (दया) दयारूप है ११। इसके प्रभाव से प्राणी समस्त प्रकार के वध एव वधनो से छट जाता है સામા દ્રોહનું નામ માત્ર પણ હોતુ નથી તેથી તેને શાનિત શબ્દથી વર્ણવેલ છે (४) "कित्ती' यशना ॥२५५ ३५ डावाथी तेनुपाय नाम प्रति छ अहिंस
नीत सर्वत्र साय छे ते पात सुप्रसिद्ध छ (५) “कती " प्रसन्नताना ४१२५३५ पाथी तेनु नाम न्ति ५ छ (6) "रईय" मान पान ४२१२
बाथी तेनुनाभ २ति छे (७) "विरईय" साप थी २हित वाथी तेनु नाम विरति पशु छ (८) "सुयग" हिंसाने २ तज्ञान थाय छ, तेथीतेनु નામ શતાગ છે, કારણ કે પહેલા જ્ઞાન થાય છે, અને ત્યાર પછી દયા એવું माया छ (6) "तित्ती" समस्त प्राणीमाने माटते सतोष नहाय છે તેથી તેનું નામ તૃપ્તિ છે (૧૦) આ અહિંસાથી પ્રાણીઓની રક્ષા થાય છે, तथी साना प्राणुस हारना इत्यथी ते २डित वाथी ते "दया" या३५ છે (૧૧) તેને પ્રભાવથી પ્રાણુઓ સમસ્ત પ્રકારના વધ અને બઘનેમાથી સત થાય છે, તેથી સકળ વધબ ધનેથી પ્રાણીઓને મુક્ત કરાવનાર હોવાથી