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प्रश्नव्याकरण 'रहिया ' राष्ट्रियाः 'पुरोहिया 'पुरोडिता 'कुमारा' कुमारा: दडणायगा' दण्डनायकाः 'गणनायगा' गणनायकाः 'माडरिया' माडम्पिकाः 'सत्यवाहा' सार्थवाहाः 'कुडपिया' कौटुम्मिता, 'अमचा' अमात्या', 'एए' एते चातु रन्तचक्रवाघमात्यान्ताः तथा ' अन्ने य एवमाई । अन्ये च एमादयः पूर्वोतेभ्यः इतरे च तत्सदृशा ये नराः परिग्गह' परिग्रह 'सचिणति' सचिन्वन्ति -परिग्रहस्य सचय कुर्वन्तीत्यर्थ कीदृश परिग्रहम् ? इत्याह-' अणत ' अनन्तम्अपरिमाणत्वात् , 'अमरण' अशरण-रक्षगासमर्थत्वात् , 'दुरत' दुरन्त-पर्यत्रसानदारुगम् ' अधुव' अधुर-पिनश्वरम् , 'अनिच्च' अनित्यम् अस्थिरम् , ' असासय ' अशाश्वत-प्रतिक्षण विशरणशीलम् , 'पावसम्मणेम' पापकर्मनेमवासुदेव हैं, वलदेव है, माण्डलिक हैं, ईश्वर हैं, तलवर है, सेनापति है, इभ्य हैं, श्रेष्ठी है, राप्टिय है, पुरोहित हैं, कुमार है, दडनायक हैं, गणनायक है, माडम्पिक है, सार्थवार है, कौटुम्पिक है, अमात्य है, तथा इनसे भिन्न जो और भी इन्ही जैसे मनुष्य है वे सय परिग्रह का सचय करते है। अब सूत्रकार विशेपणो द्वारा परिग्रह विशेपमा प्रकट करते है वे कहते हैं कि यह परिग्रह ( अणत ) अपरिमित होने से अनत है। (असरण ) रक्षा करने में असमर्थ होने से अशरणरूप है। (दुरत) अन्त में इसका विपाक जीवों को बहुत ही भयकर रूप में भोगना पड़ता है-इसलिये दुरन्तविपाक वाला होने के कारण यह दुरन्त है । ( अधुव) विनश्वर स्वभाव वाला होने के कारण यह अध्रुव है। (अणिच्च ) अस्थिर होने से यह अनित्य है । ( असासय ) प्रतिक्षण खिरने का स्थ વાસુદેવ છે, બળદેવ છે, માલિક છે, ઈશ્વર છે, તલવર છે, સેનાપતિ છે, ઈભ્ય छ, श्रेष्ठी छ, राष्ट्रिय छ, पुरोहित छ, सुभा२ छ, उनाय छ, गनाय छे, માડમ્બિક છે, સાર્થવાહ છે, કૌટુમ્બિક છે, અમાત્ય છે, તથા તે સિવાયના બીજા પણ તેમના જેવા જે લેકે છે તે બધા પરિગ્રહને સચય કરે છે હવે સૂત્રકાર વિશેષણ દ્વારા પરિગ્રહમા વિશેષતા પ્રગટ કરવાને માટે
छ 8-म। पश्डि " अणत" मेड पाथी मनात छे “असरण" २क्षा ४२वान असमर्थ हावाथी मश२४३५ छ, “ दुरत " वन तना વિપાક (ફળ) બહુ જ ભયકર રીતે ભોગવવું પડે છે-તેથી દુરઃ વિપાક पाणी डावाने ४२ ते हुरन्त छ “ अधुव" नाशवतवमान उपाथी त म छ, “अणिच्च ” मस्थि२ डापायी त भनित्य , " असासय" પ્રતિક્ષણ હાથમાથી ખરી પડવાના સ્વભાવવાળો હોવાથી તે આશાશ્વત છે,