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ম্যাঙ্গণে __ आत्मप्रदेश सहोपचित्य ' चउविहगई पेरत' चतुर्विधगतिपर्यन्तम्, चतुर्विधा
चतुःप्रकारा गति =नरकादिस्या पर्यन्तो विभागो यस्य स त तथोक्त संसारस् 'अणुपरियट्टति ' अनुपर्यटन्ति परिभ्रमन्ति ॥ १॥
ये च माणिनोधर्म न श्रृण्वन्ति, तथा ये च श्रुत्वापि प्रमायन्ति अमादं कुर्वन्ति ते उभयेऽपि ' अकयपुण्णा ' अकृतपुण्या-माणातिपातादिपापपरायणत्वात् हीनपुण्या ' अनतए ' अनन्तकान्-अनन्तान् ' सगइपरखदे ' सवैगतिपस्कन्दाननरकनिगोदादि चतुर्गतिभ्रमणानि ' फाहिति' करिप्यन्ति ।। २ ॥
ये च मि यादृन्टिका अनुद्धिका-विवेकबुद्धिविग्ला पद्धनिकाचितकर्माणः है- 'एएहिं , इत्यादि।
(एहिं ) इन हिंसा आदिरूप (पचहि पाच (आसवेहिं ) आस वों के आचरण करने से जीव ( अणुसमय ) प्रतिक्षण (स्य आचिणित्त) ज्ञानावरणीय आदि कर्ममल का यद करके-आत्मप्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावगाहरूप सयध करके (चउविगइपेरत) नरकादिरूप चार प्रका रकी गतिवाले (ससार) ससार में (अणुपरियति) परिभ्रमण किया करते हैं ॥ १॥ (जे य न सुणति धम्म ) जो प्राणी श्रुतचारित्ररूप धर्म का श्रवण नही करते है तथा (सोऊण य जे पमायति ) जो सुनकर के भी प्रमाद पतित होते रहते हैं, ये दोनों ( अझयपुण्णा) प्राणातिपात आदिको में परायण रहने के कारण हीन पुण्यवाले हैं । (अनतए सव्व गईपक्खदे काहिंति ) अत. अनतरूप में नरकनिगोद आदि चारोगतियों में परिभ्रमण करते रहेंगे ॥ २ ॥ (जे नरा मिच्छादिट्ठी अबुद्धीया मनु. 64 1२ अरीन पाताना पियारे शव -" ए ए हिं" त्याह
___“ एएहि " हिंसा माहि ३५ “ पचहिं" ते पाय " आसवेहि " मास वान मायक्वाथी "अणुसभय " प्रत्ये। सो "रय आचिणितु " ज्ञाना વરણીય આદિ કર્મમલને બ બ બાધીને–આત્મ પ્રદેશની સાથે એક ક્ષેત્રાવગાહરૂપ सय ४शन " चउविहगइपेर" न२४ा ३५ यार गति वा “ ससार" ससारमा " अणुपरियति" परिभ्रम उयो ४२ छ ॥१॥
“जेय न सुणति धम्म" रे ७३ श्रुतयारित्र३५ धमनु श्र4] ४२ता थी, तथा “ सोऊण य जे पमायति " सालजी २ प्रभावमा मला २६ छ, ते मन्ने “ अफयपुण्णा" प्रातिपात माहिमा दीन २२वान ४२ अन्यहीन डाय छ, “अनवए सन्नगई पक्सदेकाहिंति "तथी अनन्त३थे नर-- કનિદ આદિ ચારે ગતિચામાં પરિભ્રમણ કર્યા કરશે સારા