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सुदर्शिनी टीका म० ५ ० ४ मनुष्यपरिग्रहनिरूपणम् 'अभिज्झा' अगिध्या-आसक्तिस्ता तथोक्ताम् , तथा 'सपरदारगमणासेवणाए' स्वदारगमनसेवनायाम् ' आयासचिमूरण ' आयासखेट, स्वदारगमने आयासशारीर मानस च अमम्, परदारासेपने खेदम्-परदाराप्राप्ती मनः खेद च कुरन्तीत्यर्थः, तथा 'पलद्दभडणवेराणि य' भण्डनवैराणि च तत्र-फलहोपाचिफ युद्धम् , भण्डनम्-परदीपोद्घाटन गाठीपदान वा, वैर-चित्तेऽमाऽनुवन्धः, तथा 'अपमाणविमाणणाओ' अपमानविमानने, अपमान विनयध्वसः, विमाननातिरस्करणम् , एतानि सर्वाणि परिग्रहस्यवार्थाय कुर्वन्ति । तथा' इन्टमहिच्छ प्पिवाससमयतिसिया' इच्छामहेच्छापिपासासतततृपिता., तत्र इच्छा-अभिलापमा. प्रम्, महेच्छा-महाभिलापश्चक्रवर्त्यादिपदाना पिपासा-पिपयमुखपानेच्छा, ताभ्यः वपिता इस वृपिताः तथा 'तण्दागेहिलोभवत्या' तृष्णादिलोभनम्ताः, तृष्णा अप्राप्तव्यस्य लाभेन्छा' गृद्धि प्राप्तद्रव्यासक्ति', लोमा चित्तरिमोहनम् , तैकरते है । (परदञ्चअभिज्झ) दूसरों के द्रव्य में आसक्ति भाव करते हैं। (सपरदारगमणा सेवणाए आयास विसूरण ) अपनी स्त्री के सेवन में शारीरिक एव मानसिक परिश्रम करते हैं, परस्त्री के अप्रासि में मनखेद किया करते हैं। तया (कलह भडणवेराणिय) कलह-वाचिक युद्ध, भडन -असभ्य शब्दो का प्रयोग-गाली देना आदि, वैर-चित्त में क्रोच करना तथा (अवमाणविमाणणाओ) दूसरों का अपमान परना, तिरस्कार करना ये सब बातें हम एक परिग्रह के निमित्त ही पापियो मारा की जाती हैं। तथा (ईच्छमहिच्छप्पिवाससययतिसिया ) परिग्रही जीव इच्छाओ से, पड़ी २ अभिलापाओं से, एव विषय सुखपान की कामनाओंसे सदा तृपित व्यक्ति की तरह तृपित ही बने रहते हैं। तथा (तण्डागेहिं लोभघत्था) तृष्णा-अप्राप्त-द्रव्य को प्राप्त करने की भावना, गृद्धि प्राप्तद्रव्य में अभिज्झ" भीतना द्रव्यमा मासहित राणे छे “सपरदारगमणासेवणाए आयासविसरण " पातानी स्त्री सेपानी शरीरिज मने मानभि परिश्रम ४२ छ, मेने ५२सीनी मासिथी भनमा ६ मनुलवे छे तथा "फलह भहणवेराणिय" -वायुद्ध, मउन-गाणे! मामसभ्य होना पण वै२-मनमा ध य तथा "अवमाणविमाणणाभो" भीकतनु अपमान, તિરસ્કાર વગેરે બધી બાબતે એક પરિગ્રહને કારણે જ લેકે દ્વારા કરાય છે. तथा " इच्छमहिन्छपिवाससयतिसिया" परिवही ४२याथी, मोटी મેટ અભિલાષાઓથી, અને વિષય સુખપાનની કામનાઓથી સદા ઝૂષિત માણ सनी म तृषित । २ह्या ४२ छे तथा "तण्हागेहि लोमघत्था" तृष्णा-मान દ્રવ્યને પ્રાપ્ત કરવાની ભાવના, ગૃદ્ધિ-પ્રાસ દ્રવ્યમાં વધારે પડતી અસક્તિ અને