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सुदर्शिनी टीका २०३ सू० २० अदत्तादायिन कीदृशफल लभेते '
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नीच कर्म कारकाः 'जीवणत्वरहिया जीवनार्थरहिता जीवनस्य मनुष्यजन्मन अर्थः = प्रयोजन धर्मध्यानादि समाचरण वद्रहिताः, जीवनयापन हेतुद्रव्यहीना वा, कीनिणा ' कृपणा = दीनाः ' परपिंडतव गा' परपिण्डतर्फका परदत्तभोजनगवेषकाः ' दुखलद्धारा' दुःखमाहारा:= दुःसाउदरपूरकाः ' अरसनिरसतुच्छकयकुक्खिपूरा' अरसविरसतुच्छकृतकुक्षिपूरा = तत्र अरस= नीरस - हिड्यादि भिरसस्कृत विरस= पुराण वनापि पुन्= कुस्त्याद्यन्न येन कनापि प्रकारेण प्राप्त तेन कृतः कुक्षिपूर:=उदरपूरण यैस्तै तथा 'परस्स' परस्य = अन्यस्य ' रिद्धिसकारमोयणवि से ससमुदयनिर्हि ' ऋद्विसत्कारभोजनविशेषसमुदयनि=ितत्र ऋद्धि:= सम्पत्तिः सत्कार= सम्मान तथा भोजन चेत्येतेषा ये निशेषाः प्रकाराः तेपा यः समुदयः उदयवर्तित्व तस्य यो विधिः-विधान से तथा त 'पेच्छता' प्रेक्षमाणाः =
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रहता है ओर यह दारिद्र्य इनका सदा तिरस्कार करवाया करता है, इसी लिये ये ( णिच) सर्वदा ( परकम्मकारिणो ) पर कर्मकारी होते हूँ - दूसरोंके घरों में नीच कामों को करने वाले होते हैं, (जीवणत्थरहिया) मनुष्य जन्म के प्रयोजनभूत धर्म यानादि सदाचारों से रहित होते हैं, ( किविणा ) दीन होते है, ( परपिंडतकगा ) परपिंड के ऊपर आश्रित रहा करते हैं परदत्त भोजन की इच्छा में रहते हैं, ( दुखलद्वाहारा ) बडी मुश्किल से अपने उदर की पूर्ति कर पाते है, ( अरसविरसतुच्छकयकुक्खिपूरा ) अरस - हिंग्वादि के ववार से रहित, विरस - पुरानाअति पुराना, उसमे भी तुच्छ कुलत्थादि अन्न जो इन्हे बडी कठिनाईसे प्राप्त होता है उससे ही ये अपने उदर की पूर्ति करते हैं । (परस्सरिद्धिसक्कार भोयणविसेस समुदयविहिं पेच्छता) दूसरोंकी ऋद्धि
तेभना सहा तिरस्र शवे छे, तेथी तेयो “णिच्च" महा પારકાની ાકરી કગ્નાર હાય છે, બીજાના ઘરમા નીચે छे, " जीवणत्थरहिया " મનુષ્ય જન્મના પ્રયાજન રૂપ સદાચારીથી રહિત હાય છે, " किविणा " हीन होय छे, " परपिंडतकगा " પરિપ ડ ઉપર સદા આધાર રાખનાર હાય છે–પરદત્ત ભાજનની ઈચ્છા રાખનાર हाय छे,,, दुम्सलद्धाद्दारा ” મહા મુશ્કેલીથી પેાતાનુ પેટ ભરી શકે છે अरसविरसतुच्छ कुक्सिपुरा " भरस-डिग महिना वधार रहित, विरसપુરાણુ –અતિપુરાણુ અને વળી તુષ્ટ-કળથી આદિ અન્ન, મુરકેલીએ મળે છે, તેના વડે જ તેએ પાતાનુ પેટ ભરે છે “ भोयणविसेससमुदयनिहिं पेच्छता " બીજાની ઋદ્ધિ
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કે જે તેને ઘણી
'परस्स रिद्धिसकारસપત્તિ, સત્કાર
" परकम्मकारिणो "
કામ કરનારા હાય ધર્મધ્યાન આદિ