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छन्ति, तत्र प्रतियन्धकान स्वजनानपि पारदारिका निम्नन्तीति । के इत्याह1 'परसदाराओ जे अरिया' परम्य दारेभ्यो येनिरता: परखी मरमान निरताः परस्त्रीसङ्गपरायणाइत्यर्थः । ता मेणसणासपविद्धाय ' मैथुनसमासम्म गृद्धाथ ' मोहभरिया ' मोहभृताः = मोहग्रस्ताः ' अस्माहत्योगाय ' अश्वाः efiant area' after महिया' ' मिगाय' मृगाथ ' एवमेक्क' एक = प्रत्येकं परस्परमित्यर्थ' 'मारे ति' मारयन्ति । ' मणुयगणा ' मनुजगणा 'वा नराय ' वानराय ' पवखोय' पथि 'रिइति ' दि=cret विशेष प्राप्नुवन्ति । तथा मैथुन सेचनात् 'मित्ताणि मित्राणि ' सिप्प मिशीघ्र 'सत्तू ' शानो भवन्ति, पुनच 'समयधम्मगणेयभिदतिं ' समयधर्मगणांच किये हुए द्रव्य को उसके लिये दे देते हैं, और जो इस विषय में उनके लिये कोई आत्मीय प्रतिक होता है उसे ये मार डालते हैं । ( परस्पराओ जे अविग्या ) यह मन कुकृत्य के ही व्यक्ति करते हैं। जो पर की स्त्रीयो के सेवन करने रूप अकृत्य से विरत नहीं होते हैं। तथा - इसी तरह (मेगस गामंपगिदा य) मैथुनमज्ञा में आसक्त ( मोरभरिया ) मेथुनमजा से विमोहित मतिवाले अज्ञानी प्राणी ( अस्मात्थी गवा य महिमा मिगा य ) अश्व, हस्ती, गाय, महिष. मृग हैं वे भी ( एकमेक मारेंनि ) आपस मे एक दूसरे को मार डालते हैं । इसी तरह ( मणुग्रगणा) मनुष्यगण ( वानराय) बदर एव (पक्वीय) पक्षी भी ( विरुज्झति ) एक दूसरे का विरोध करते है तथा ( मित्ताणि खिष्प भवति सत्तू ) इसी कर्म के सेवन से मित्रजन भी शीघ्र शत्रु बन जाते हैं । फिर जो पारदारिक परस्त्री में आसक्त होते है वे (समय)
સ્ત્રીને આપી ઢ છે, અને તેના એ પરસ્ત્રીગમનના કૃત્યમા જે કઈ સ ખ ધી
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भाउजीसी ३५ थाय छे तेभने भारी नाचे छे " परस्सदाराओ जे अविश्या' જે લેક પરસીગમન રૂપ કૃષ્કૃત્યથી વિરકત થઈ શકતા નથી તે લેાકા જ આ अधा मुहैत्या उरे छे तथा मे ४ प्रमाणे " मेहुण्सण्णा सपगिद्धाय " भैमैथुन સત્તામા આસક્ત, माहभरिया " મૈથુન સજ્ઞામા વિમાહિત મનવાળા અજ્ઞાની "अस्साद्दत्थी गवा य महिसा मिगा य " अश्व, हाथी, गाय, लेस भृगू, આદિ પ્રાણીઓ પણ 11 एकभेक मारेति " આપસમા લડીને એક ખીજાને મારી નાખે છે. એ જ રીતે “ मणुयगणा " मनुष्यो, <t वानरा य " वानरेश, " पक्सी य ” અને પક્ષીએ પણ એક મીજાના વિરોધ કરે છે " मित्तोणि सिप्प भाति सत्तू ” એ કર્માંના સેવનથી મિત્રો પણ જલ્દી તેમના શત્રુ ખની
જાય છે વળી પરસીમા આસક્ત લાકે 看着 समय " पोताना सिद्धांतानी,
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