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सल्ली -रीका R०५ मू०३ यथा ये परिग्रह पुर्वन्ति तनिरूपणम् ५१७४। पनीयरत कारण त यत्तपनीयफना-नानी यमु वर्ग तम्य काम समयसम्मान वयोला भनी परितापनेम तुपर्णस्य याशों को मैवमि, ताश-वर्ण युक्त जमा पासात्मने बहुवचनम् । तथा ग-यनारे जे गहा' ये जनाः सम्पनिकाल मसिद्धा नेप्नुलाग्लान्या, जोइसम्मिाख्यातिपि-ज्योतिया चार अरतिका -परिभाम्यन्ति, ने.ग्रहाः, नधा र य तवश्व-ज्योतिष्पनिनेपानम-जगत शुभाशुमनिमितमानम्त्योदय, मासुमतिपुडियातास चोटीवालान्तासन इत्यादिनाम्ना भापाममिद्धाः कीरगाएते. इत्याद'गहमागनिरतिका'-, गमनशीलमाश्फराशितोऽन्यरागो गमनम्बभागाएते चन्द्रमूर्यग्रहात्रिविधायसेन। तिकदेवा उक्ताः । तया ' अवानीमहविटा य ' अटानिंगतिविधाच 'नासत्तदेव-- गणारी नवनायीहगीदत्याह-तयारमाणामठाणमठियाओमी अस्निगरिक मंगल में भेदायगी तित्ततवाणिज्जणगर्वणी! तसतपनी-पाहुणे मुंवणे के वर्ण के जीर्ण धालीह। अति-ना
अग्नि में तपाने से सुवर्ण का जला रगदोता है वैसी ही 'इसको रंग हतिया (जे र्य गेही जोइमिम्मि चार चैति इनसे अंतिरिक्त जी इस समय में प्रसिद्ध नेपच्युलेपैल आदि ग्रेह है कि जी ज्योतिश्चक में। परिभ्रमण करतेवर तथा-(कर्जये) फैतु ग्रह जो जंगत के शुभ अशुभ निमित्त को लेकर उदित होता है और जिसे पूछडियो-म तारा" चोटीवाला तारा" इत्यादि नाम से लोग फरा करते हैं ये सबहो (गइरहया ) गमनशील है-एक राशि से अन्यराशि पर गमन. करने के स्वभायवाले हैं। ये उक्त (तिविरा) तीन प्रकार के चद्र, सूर्या ग्रहस्प ज्योतिपी देवे तथा' (अट्ठावीम विरी) अट्ठाईस' प्रकार के (नक्वत्तदेवंगणा) नक्षत्र (णाणासठाणसठियाओ) नाना गाय ", , धूमातु, युध-मने २0१४-11 में ताश छ, त - २४-मण “ तत्ततवणिज्जणगवण्णा" तावदा मुना २ पाणछ,'तया “जे अगहा जोइसिम्मि चार चरति" ते भिवाया-ystallia કરે છે તે છે તથા
તગ્રહ જે જગતના શુભ અશુ મિ.દર્શાવવર્તેિ ઉગે છે અને જેને પ્ર િતાગને નામે ઓળખે છે, એ બધ * "गहरईया " भिनास यशसिमाथी सन्यासिभ ' पानास्वमा रोतिबिहा" न चन्द्र, भूयः अन भ७३५, न्याति देवा तथा अट्रोवीसइविहामायावी इन नक्खक्षण
वगणा" नक्षत्राणामडियालो", विविध
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