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२१५२० पचविधा ज्योतिपिफ देशमक्षा अवमानिकाना--'उपस्चिरर ' परिम्परा:तियग्लोकस्योपरिवर्तिग उडालोगवाषिणोन अर्धलोकासिन वेमानिय योधमानिकाच दिवा दुविहा' द्विविधा-दिमकारा, कल्पोपर्पन पासीत भेदीताता-कल्पोपपना द्वादेशधा, तानाह- सोहम्मी-सीण-संणकुमार-मीहिंद गभलोग-लतंग महासुर-सहस्सार-मागय-पाणय-भारण-चुया सौधर्मेशान 'सनत्कुमारमाहेन्द्रह्मलौलान्तकमहशुक्र सहस्रीरोनतमागतारणाच्युताः, ते
प्परविमाणवासिणी कल्पवरनिमाननासिन.-कल्पोपपना मुरगणा' सुरंगणाअ पल्पातीतीनाह-मेंजा" येयका अगुत्तरी अनुत्तरी
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espitiपउने का प्रकाश भी एकसी स्थिर ही रहनों है । इस प्रकार यह पांच
प्रकार के ज्योतिपिक देवों के विषय में भावार्थ रूप से यत् किवितायन किया है । अब सूत्रकार वैमानिक देवों के विषय में करते हे (उपरिचिरा उडलोगवासी वेमाणिया देवा विहा) तिर्यग्लोक है। ये वैमानिक के जार जो अर्चलोग है उसमें ये देव रहते हैं। इनका नाम 'वैमानिक 'देव क्ल्पोपपन्न और फल्पातीत के भेद से दो प्रकार के होते है। इनमें कल्पोपपन्न बाहर प्रकार के हैं, वे ये हैं- सोहम्मी-साण-सणकुमारमाहिंद-घभलोग. लतंग-महासक- सहस्सार-आणय-पणिय-आरण-5 ज्या) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तर्क, महा शुक्र, सहनारे, आनत, प्राणूत, आरण और अच्युत । इन् (कप्पवरबि विमाणवासिणी सुरगणा ) कल्पवरविमानों में रहनेवाले,सुरगण कल्पा पपन्न करलाते हैं। (गेवेज्जा अणुत्तरा यदुविहा कप्पातीय विमाण"જ સ્થિર રહે છે એ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારના અતિષિક વિશે ભાવાર્થ રૂપ ડું ન કરવામા આવ્યું છે. સૂત્રકાર વૈમાનિક દે ‘વિ કહે છે
परिचर। उड्डलोगरासी' माणियादेवा दुविहा 'तिय Salmit S५२, ' લેક છે તેમતે દે રહે છે, અને તેમને વૈમાનિક કહે છે તે વૈમાનિક
ના બે ભેદ છે-કુપાતીત અને કપિપપ તેમના કપિપપન્ન નેચે પ્રમાણે આર अता- सोहम्मीरसाण-सणकुमार-माहिद-बभन्लोग-लंतग-सहासु-सासमार -आणया-पारण-सारणऽच्नुया" सौधा, शान, सनामार भाड, Marati सान्त:, भY४, ससार, मानत, प्रात, आमच्युत र “क्रायवर विमाणवामिणों सुरगणा सर विभाममा २नार सुस्काराने स्पेन र "गेवेजा अणुत्तरा'य दुविहा कल्पातीया विमाणवासी महाढिया उत्तमा
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