________________
- - -- - % 3AE
पञ्चविधा ज्योतिपिक देशमा अनिमानिकानाह-उपस्चिरर ' परिचराःतिर्यग्मोकस्योपरिवर्तिनः- उडालोगवागिणोश उप्रलोकवासिनः विमाणिमा य देवाधिमानिकाशदिवा पबिहा' द्विविधा:-दिम काराः, परपोपपन्न कल्पातीव भेदात ता-करपोपपना द्वादेशघा, तानाह- सोहम्मी-सण-संर्ण कुमार-मीहिंद
भलोग-लतंग महामुग-सहरसार-आय-पाणय-भारण-न्चुया सौधर्मशान 'सनत्कुमारमाहेन्द्रनीलो गन्तकमहोशुक्र-सहस्रारीनेतमागतारणायुताः, ते
पविमणिवासिणी कल्परनिमानगासिन.-कैल्पोपपना मुरगणा' सुरंगणी अर्थ पाल्पातीतीनाह- मेजा गयकाः अघुत्तरी अनुत्तरीE
ntitatti krt. उनका प्रकाश भी एकसा स्थिर ही रहती है। इस प्रकार यह पांच प्रकार के ज्योतिषिक देवों के विषय में भावार्थ रूप से यत् किश्चितायन किया है। अब सत्रकार चैमानिर्क देवों के विषय में कहते हैं- ( उकरिचिरा उठूलोगेवासी वैमाणिया देवा दुधिहा) तिर्यग्लोक है। ये वैमानिक के जार जो ऊर्चलो है उसमें ये देव रहते हैं। इनका नाम वैमानिक देव कल्पोपपत्र और कल्पातीत के भेद से दो प्रकार के होते है। इनमें कल्पोपपन्न बाहर प्रकार के है, वे ये है- सोहम्मी-साण-सणकारमाहिंद-घभलोग-लसँग-महातुक-सहस्सार-आणय-पणिय-आरण-5
चुयाँ) सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महा शुक्र, सहस्रारे, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत । इन (कप्पवरीब विमाणवासिणो सुरगणा ) कल्पवरविमानों में रहनेवाले सुरगण कल्पापपन्न कहलाते हैं । (गेवेज्जा अणुत्तरा य दुविहा कप्पातीय विमाणજે સ્થિર રહે છે. આ પ્રમાણે પાંચ પ્રકારને અતિપિકને વિશે બાવા રૂપ ડું કર્થક કરવામા આવ્યું છે, હવે સૂત્રકાર વૈમાનિક વિષે કહે છે" उपरिचरा, उड्लोगनासी' वैमोणियादेवा दुविहार तय Sangit G५२, લેક છે તેમા તે દે રહે છે, અને તેમને વૈમાનિ કહે છે. તે મેનિક નિા બે ભેદ છે-કપાતીત અને પિત્ત તેમનાં કપ નીચે પ્રમાણે આર Hना -" सोहम्मीरसाण सणकुमार-माहिंद-बभलोग-लतग-महासुक-सहरसार -आणय-पारण बारेणऽच्चुया" सीधी, न, सभा , माड, ets aldy, माशु, ससार, मानत, प्राणत, सा२६५ अश्युत से “पवर विमीणवासि! "सुरगणा ॥ ५ विभामा २९ना मुशाने पापन
" गेवेजा अणुत्तरा'य दुविहr कल्पातीया विमाणवासी महड्ढिया उत्तमा