________________
५००
प्रश्नव्याकरण टोका--'जबू' इत्यादि
सुधर्मा स्वामी पश्चमामाहारस्वस्प जिज्ञासमान जम्न्यामिन प्रति माह'जबू' हे जम्यूः । 'एनो' इतथतुर्थासमहारादनन्तरं परिग्गहो' परिग्रह - परिग्रहण परिगृह्यते भू रूपेण मून्छापरिग्गहोपत्तो इति वचनात् धर्मोपकरण विनेत्यर्थ इति या परिग्रहः = परिग्रहतराम रक्ष्यमागविशेषणानुरोधाद परिग्रहशब्दोऽत्र परिग्रहतरुपरको द्रष्टव्यः । 'पचमो' पनमआस्रो 'णियमा' नियमात् निश्चयेन भाति, नान्याकथनातः परः आसर 1 अय परिग्रह कयम्भूतः? इत्याह-'णाणामणि ' इत्यादि । 'णाणामणि-कणग-रयण-महरिह-परिमलसपुत्तदार-परिजण-दासो-दास-भयग-पेस्स-हय-गय-गो-महिस-उद-खरनिरूपित करते हैं-'ज पत्तो' इत्यादि।
टीकार्थ-श्री सुधर्मा स्वामी पांचवें आस्रव द्वार के स्वरूप को जानने की इच्छचाले श्री जयूस्वामी से कहते है-(जनू) हे जम्बू ! (एत्तो) चतुर्थ आस्रव द्वार के पाद (परिग्गहो पचमो आसको णियमा)
परिग्रह पाचवा आनव द्वार नियम से है। इसके बाद और कोई__ आस्रव द्वार नहीं है यह यात " नियम" शब्द से सत्रकार ने प्रदर्शित
की है 'ग्ररण करना' अथवा ' जो मृच् वुद्धि से ग्रहण किया जावे' वह परिग्रह है क्यों कि शास्त्र में मृच्छाको परिग्रह कहा है ऐसी इस परिग्रह शब्द की व्युत्पत्ति है । इस व्युत्पत्ति के अनुसार यह परिग्रह शब्द यहां परिग्रह रूप वृक्ष के अर्थ वाला जानना चाहिये क्यों कि इसे स्पष्ट करने के लिये जो सूत्रकार विशेषण इसी सत्र में कह रहे है वे इसी बात की पुष्टि करते है। (णाणामणि-कणग-रयणमहरिय-परिमल-सपुत्तदार-परिजण-दासी-दास-भयग-पेस्स-हय गो "जबू एत्तो" त्याह
પાચમા આસવનું સ્વરૂપ જાણવાની ઈચ્છાવાળા જ બૂસ્વામીને શ્રી સુધર્મા स्वाभी -"ज" | " एतो" याथा मानव द्वार पछी “ परिगहो पचमो आसवो णियमा" नियम प्रमाणे व पायभु मानव द्वार पर ગ્રહ આવે છે ત્યાર પછી બીજી કોઈ પણ આસ્રવદ્વાર નથી તે બાબત "नियम" था. सूत्रारे मतावत " अ २९ मथवा रे ગ્રહણ કરાય તે પરિગ્રહ છે, એવી આ પરિગ્રહ રાબ્દની વ્યુત્પત્તિ છે તે ખ્યાતિ પ્રમાણે આ પરિગ્રહ શબ્દ અહી પરિગ્રહરૂપ વૃક્ષના અર્થવાળો સમજવાને છે કારણ કે તે વાતને સ્પષ્ટ કરવાને માટે સૂત્રકાર જે વિશેષ सा सत्रमाही ह्या त से पातने छ। साथै छे "जाणामणिकजय-रयण-महरिह-परिमल-खपुत्तदार-परिजण-दासी-दास-भयग-पेस्स-हय-गो ....