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सुदर्शिनी टीका ० १ सू० २ परिग्रहस्य निशनामनिरूपणम्
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सस्तवः =परिचयः - परिचयकारणत्वात् २२, 'अगुत्ती' अगुप्तिः = तृष्णाया अगोपनम् २३, 'आयाम' आयासः = दुखम्, आयामहेतुत्वात्परिग्रहोऽ प्यायास:उक्त' २४, ‘अनिओोगो' अवियोगः - नादरपरित्यागः २५ ' अमुत्ती ' अमुक्ति:अनिलभता २६, 'तण्डा ' तृष्णा धनादेशकाइक्षा २७, ' अणत्यगो' अनर्थकःअनर्थ कारणत्वात् २८, ' आसत्थी' आसक्ति:- मूर्च्छा, तत्कारणत्वात् २९, मे लगा रहता है इसलिये इसका नाम प्रविस्तर है २० । परिग्रह अनेक अनर्थो का कारण रहता है इसलिये इसका नाम अनर्थ है २१ । परिग्रही जीना अनेक जीवो के साथ सस्तवपरिचय रहता है। इसलिये परिचय का कारण होने से उसका नाम सस्तव है २२ | इसमें तृष्णाका गोपन नही होता है-अत इसका नाम अगुप्ति है २३ । परिग्रह की जाला में जलते हुए जीव को बहुत अधिक आयासों दुखों को भोगना पडता है इसलिये उनका हेतु होने से परिग्रह का नाम भी आयाम है २४ । परिग्रही जीव मे लोभ की अधिक से अधिक मात्रा होने के कारण वह धनादिक का परित्याग दान आदि सत्कृत्यों में भी नही कर सकता है इसलिये इसका नाम अवियोग है २५ । इस परिग्रही जीव मे निर्लोभता नही होती है इसलिये इसका नाम अमुक्ति है २६ । धनादिक के आगमन - आय की आकाक्षा परिग्रही जीव के सदाकाल रहती है इस लिये इसका नाम तृष्णा है २७ । परिग्रह अनेक अनर्थो का कारण है इसलिये इसका नाम अनर्थक है २८ । मूर्च्छा का कारण होने से इसका
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विस्तार पुवामा लाग्यो रहे छे, छेथी तेनु नाम 'प्रविस्तार ' छे (२१) परि ગ્રહ અનેક અર્થોનુ કારણ અને છે, તેથી તેનુ નામ 'जनर्थ' छे (२२) परिग्रही लवना भने वनी साधे 'सस्तव ' परियय थतो रहे छे, तेथी परिथयतु भरण होवाची तेनु नाभ ' सस्तव ' छे (२३) तेभा तृष्णयानु गोयन થતુ નથી, તેથી તેનુ નામ अगुप्ति' छे (२४) परिग्रहनी नवाजामा भजता જીવાને ઘણા વધારે આયાસે-૬ખા ભાગવવા પડે છે તેથી તે આયાસેના કારણરૂપ હાવાથી પરિગ્રહનુ નામ પણ आयास " है (२५) परिग्रही જીવેામા લેાભની માત્રા વધારેમાં વધારે હાવાને કારણે તે દાન આદિ સત્કૃત્યામા ધનને પરિત્યાગ કરી શકતા નથી તેથીતેનુ નામ अवियोग' छे (२९) ते परिथडी लवमा निर्योलता होती नथी, तेथी तेनु नाम ' अमुक्ति ' છે (૨૭) ધનાદિ પદાથૅ મેળવવાની આકાક્ષા પરિગ્રહી જીવને સદાકાળ રહેછે, તેથી તેનુ નામ तृष्णा' छे (२८) परिग्रह भने अनर्थोने भाटे जरगुइय हाय छे, तेथी तेनु नाम ' अनर्थक' छे (२७) भूर्छा 'मासहित' तु द्वार
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