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सुदर्शनी टीका १० ४ २०१३ युगरिलीयपनिरूपणम्
४७ वेया, गंदणवणविवरचारिणीओ ओव्वअच्छराओ उत्तरकुरुमाणुसच्छराओ आच्छेर गयेच्छणिजाओ तिणिपलि ओवमाई परमाउं पालइत्ता ताओ वि उवणति मरणधर्म अतित्ता कामाण ॥ सू०१३॥
यीका-'निद्धपाणिलेहा' स्निग्यपाणिरेखाः = मुस्पष्टहस्तरेखाः ' ससिसरसग्वचावरमोत्थियतिमत्तमरिइयपाणिलेहा । शनि-मर्य-शह-चक्रवर स्वस्तिरविभक्तमुरतिम्पाणिरेग्वाः = चन्द्रमूर्याचदक्षिणावर्तस्वस्तिकलक्षणाः निमक्का मुस्पष्टा रविदा-सुखदाः पाणिरेखाः हस्तरेसा यासा तास्तथा । ' पीणुप्णयावरस्थिप्पदेमपडिपुष्णगलकपोला' पीनोन्नतकक्षरस्तिप्रदेशमतिपूर्णगलम्पोला: = पीनाउन्नतो च कक्षी = पाहुमूली पस्तिः = नाभ्य. घाभाग स्तथा प्रतिपूणा गलकपोलौ यासा तास्तथा 'चउरगुलमुप्पमाणकवर सरिसगी' चतुरगुलमुप्रमाण कम्युारसदृशग्री: = चतुरगुलप्रमाणा कम्युवर
फिर वे कैसी होती है सो कहते है--निद्वपाणिलेहा' इत्यादि।
टीकार्थ:-(निद्धपाणिलेहा ) इनके दोनों हाथों की रेखाएं स्निग्धसुस्पष्ट होती है। (समिसरसखचकवरसोत्थियविभत्तविरहयपाणिलेटा) उनके हाथों में शशि-चढ़ रवि, शख, चक और दक्षिणावर्त स्वस्तिक, इन आकार की रेसाएँ होती हैं । और ये सन रेखाएँ सुस्पष्ट रहती हैं, सुग्वद होती हैं। (पीणुण्णयकासवत्यिप्पदेसपडिपुण्णगलकवोला) इनकी दोनो कक्षा-पाहुमूल-पीन-पुष्ट और उन्नत होता है। वस्ती नाभि का अधोभाग भी ऐआ ही होती है । तथा गला और कपोल ये दोनों इनके प्रतिपूर्ण-भरे हए रहते है । (चउरगुलसप्पमाणकबूवर
ते युगतिर श्रीमान पधु पनि छ-" निद्धपाणिलेहा" त्याहि
Auth -"निद्वपाणिले हा" तमना ५-२ डायनी ३भामा निग्ध-सुस्पष्ट खाय छ " ससिसूरससचकारसात्थियावेभत्तविरइयपाणिलेहा " तमना अायामा ચદ્ર,સૂર્ય, રાખ, ચક્ર,દક્ષિણાવર્ત સ્વસ્તિક આદિના આકારની રેખાઓ હોય છે ते धा २०१२॥ सुस्५०८ मन सुप हाय छ " पीणुण्णयकक्सवस्थिप्प देसपडिपुण्णगलकवोला" भनी मन्नो पुष्ट मने उन्नत जाय छ यस्तिનાભિની નીચેનો ભાગ પણ એ જ હોય છે, તથા તેમનું ગળું અને ગાલ પ્રતિपूण सरावहार साय छे " चउरगुलसुप्पमाणकपूनरसरिसगीना" तेमनी श्रीवा