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सुदर्शिनी टीका १० ४ सू० १२ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम्
४७ जलउडाहा' भुजगानुपतिनुक गोपुच्छवृत्तसमसहितनमितादेयल्डहाइवः : भुजङ्गमद् = सर्पपन् भानुपूर्पण तनुमा - क्रमशः कृशो तथा गोपुच्छवद् मृत्ती : चतुली समसहिता-समत्वयुक्ता मुगुठिना च नमिती=मुदीर्घलम्बमानी आदेयौ= लाघनीयौ 'राह' इति सुन्दरा पाहू-मुनी यासा तास्तथा 'तबनहा ' ताम्रनसाः-रक्तवर्णनखसम्पानाः 'मसलग्गहत्या' मासलाग्रहस्ता.-मासलौ-पुष्टी अग्रहस्ती-हस्ताग्रभागी ' पोचा' इति प्रमिद्धो यासा तास्तथा, तथा ' कोमल पीचरवरगुलीया' कोमल पोवरवराङ्गुलिकाः, तेऽपि मरणधर्ममुपनमन्तीतिवक्ष्यमाणेन सम्बन्धः ।। सु-१२॥ पुनस्ताः कीदृश्यः ? इत्याह-'निद्धपाणि लेहा' इत्यादि
मूलम्-निद्धपाणिलेहा मसि-सूरसखचकवर सोत्थिय विभत्त - मुरइय-पाणिलेहा पीणुण्णय करखवस्थिप्पएस गोपुच्छ्वसमसरियनामिय आदेज्जलउटवाहा ) इनकी दोनो भुजाएँ सर्प की तर क्रमशः कृशहुई होती है। तथा गाय की पूछ की तरह वर्तुल होती है । सम-एफसी तथा सहित-सगठित होती है । नमितघुटनों तक लगी रहती है। आदेय-देखने मे प्रशसनीय एव यही सुहावनी लगती हैं। (तपनहा ) इनकी अगुलियों के नख लाल वर्ण वाले होते हैं। तया (मसलग्गास्था ) इनका पाँचा मासल-पुष्ट होता है। तथा ( कोमलपीवरवरगुलीया) इनकी हाथों की अगुलिया कोमल पीवर-पुप्ट एच वर-उत्तम होती है। ऐसी ये स्त्रिया भी कामभोग से अतृप्त री मरणधर्म को प्राप्त करती हैं । ऐसा सवध आगे के वाक्य से जोड लेना चाहिये । स०१२ ॥ " भुयग-अणुपुव्य-तलुय गोपुच्छवट्ट-समसहिय-नामिय-आदेज्जल-उडवाहा " તેમની બને ભુજાઓ સર્ષની જેમ ક્રમશ કૃશ થતી જાય છે, તે ભુજાઓ गायनी छ वी वर्तु सभ-मेड स२जी, तथा सहित-सुगठित, घुटणा सुधी सामी, भने माय-प्रशन्त, अने शमिती दाणे " तपनहा" भनी माजीयाना न सास २ जना डाय छ, तथा “मसलगाहत्या" तमना पाया भामस-पुष्ट डाय छ, तथा " कोमल्पीचरवरगुलिया" तेमना डायनी આગળિયે પીવર-પુષ્ય અને ઉત્તમ હોય છે એવી તે યુગલિક સ્ત્રીઓ પણ કામગથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુ પામે છે એ સ બ ધ આગળના વાડો साथे सभा सेवा ॥ सू० १२ ॥