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सुदर्शिनी टोका ल०४ मू० १२ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम्
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अफोसायत पउमगमीरनिगडनाभी भी ' तापस्य विणावर्ततरजभर - रवि - करणवरुगनोपिवनिशानमाननगरस्टिनासिकाः तत्र गद्गावर्त्तकः गद्गानयानलभ्रमः, स च दक्षिणावर्त्त, तरहमपुर - तद्वैः भङ्गुरः वक्रथ, तद्वत्, तथा रविकिरणैः=ति विगमितः निरासावस्था माप्नुवदिसामानाविमुञ्चत् यत् पद्म तद्वद् गम्भीरा पाच नामसा तास्तथा । 'अणुमडपमत्थसुजायपीणकुच्छी ' अनुनापीनकुक्ष्य = ननुद्भट = उदरहितौ समौ मशस्तो सुजातौ सुसस्थिता पीनी सुपुष्टा उनी रोमभाग यासा तारत ग सनयपासा सनतपा:= पुत्वादनमत्पार्श्वभागा', 'सगयपासा ' सङ्गतपार्श्वा:- सुमि लिपाभागाः, आएर गुदरखामा सुन्दरपार्था = मनोहरपार्श्वभागाः, ' "सुनायपाता जातपाश्चः सस्तिपात्र, 'मियमायवीणरयपासा' मितकिरण तरुगनोरिन अकोलायत पत्र मर्ग भीरविगडनाभीओ) इनकी नाभि तरंगो सेवक ने ऐसे दक्षिणावर्तवाले गंगानदी के जल भ्रम - मँयर के समान होती है। तथा सूर्य की किरणों के संपर्क से अपनी मुकुलित अवस्था का परित्याग कर विकसित अवस्था को प्राप्त हुए पद्म के समान गभीर होती है और free बड़ी सुन्दर होती है । (अणुहडपसर सुजाग्रपणकुच्छी) उनके उदर के दोनों पार्श्वभाग अनुद्भटअनुल्वण-बराबर - एक से होते हैं । प्रशस्त - सुहावने होते हैं। सुजातअच्छे सम्थानवाले होते हैं । पीन-पुष्ट होते है । ( सनयपासा) तथा पुष्ट होने के कारण उनके दोनो तरफ के वे पार्श्वभाग नीचे की ओर लुके हुए रहते है । (सगयपासा) वे दोनो उनके पार्श्वभाग परस्पर में सगत-मिले रहते हैं। अतएव वे (सुदरपासा) नडे सुन्दर होते हैं । तथा ( सुजायपासा) अच्छे सस्थान से युक्त कहे जाते हैं। (मियमा भीरनिगडनाभीओ " तेभनी नालि त गोधी प અનેલ દક્ષિણાવર્ત વાળા ગંગા નદીના જલભ્રમ-વમળ જેવી હોય છે, અને સૂર્યના કિરણોનાસ પથી પેાતાની ખીડાયેલી અવસ્થા ઈંડીને વિકમિત થયેલા કમળના જેવી ગભીર भने निकट अत्यंत સુદર હાય છે अणुभव सत्यसुजायपाणकुच्छी
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ભાગે
તેમના ઉની માજુના અને (કુલીએ ) એક સરખા હોય છે, પ્રાન્ત, પુષ્ટ અને સુડાળ હાય છે सनयपासा હાવાને કારણે નીચેની માત્રુ ઝુકેલા રહે છે બન્ને ફુલીએ પરસ્પરમા ભગત મળેલી હોય છે, ઘણી સુદર હોય છે તથા " सुजायपासा"
” તે અન્ને કુક્ષી પુષ્ટ स गयपासा ' तेभनी ते તેથી તે “
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'सुदरपासा " सुघटित होय छे “मियमाइयपीण
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