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नयारको महारलमाप्टिकमाणूरादिमजाविश्वगाः परमार्थ करीन प्रतिते मन्त युदे बलराभेण गोप्टिकाभिधाना मागे पागुदेवन च गाणूगमिधानो मल्लो निमः इति । 'रिममवाइगो' रिएपमातिनः = रिटाभिधानकगालीघातका, 'केसरिमुहारिफाडगा' केसरिमुसवितामा विशेषण निपृष्टाभिवप्रथम वामदेवापेक्षया गोध्यम् । म हि नगरोपकारि घनकानननिकामि महासिंह मुख विदारितवान् । ' दरियनागदपमहणा' उप्तनागदमयनाः यमुना निवासि महाविपकालनागपिनाशकाः, ' जमलजुगमनगा ' यमगर्नुनमन्त्रमा यमलार्जुनक्षविनाशकाः ती हि पिठौरिणी विधायरी यमलार्जुननामको वृक्षरूप विकुळ पयि स्थिती चुगितमन्तः। ' महासउणिपूरणऊि' महाशकुनि तनारिपवा महाशकुनिः पूतना च विद्याधरपन्यो, तयो रिपनः । बाल्यावस्थाया मारा, तथा वासुदव कृष्ण ने चाणूर नामके मल्ल को मारा यही बात " पलवग गज्जत०" इस पद द्वारा प्रदर्शित की गई है। तथा (रिट्ठवसभघाणो) जो कस के रिष्ट नाम के मायावी चलीवर्द के घातक प तथा (केसरिमुहविष्फाडगा) केशरी सिंह के मुस को भी फाड़ देते थे, यह विशेषण त्रिपृष्ठ नारायण की अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये। क्यों कि उन्ही ने नगर में उपद्रव मचाने वाले जगली सिंह के मुम्ब का विदारित किया है। (दरियनागदप्पमहणा) तथा जिस नारायणन यमुना निवासी महाविपैले काली नामकसर्प का विनाश किया है-तथा ( जमलज्जुणभजणा) नारायण ने पिता के चरी दो विद्याधरों को का जिनका नाम यमल और अर्जुन था और जो मार्ग में वृक्ष का रूप ‘अपनी चिक्रिया से घनाकर खडे हो गये थे उनको मारा है (महासर णि पूयणरिज) तथा जो विद्याधर की महाशकुनि एव पूतना नामक दो हो यार नामना मसने भार्या मे पात “घलवगगज्जत" ५४ द्वारा मतावामा मावी छे तथा — रिदवसभघाइणो "२ ४सना शिष्ट नामना भायावी. दीवना धात त तथा “केसरीमहविप्फाडगा" सिना સુખને પણ ફાડી નાખતા હતા તે વિશેષણ ત્રિપૃષ્ઠ નારાયણને અનુલક્ષીને વપરાયું છે, કારણ કે તેમણે નગરમા ઉપદ્રવ મચાવનાર જ ગલી સિહના સુખને थोरी नायु तु “दरियनागदप्पमहणा" तथा नारायहरे यमुनामा २७ता अतिशय उरी ४जीनागने वश ध्यो , तथा “ जमलज्जुणभजणा" ना। થણે તેમના પિતા વમળ અને અર્જુન નામના બે દમન વિદ્યાધરે, કે જે માર્ગમાં પિતાની વૈક્રિય શક્તિથી વૃક્ષના રૂપ લઈ ઉભા થઈ ગયા હતા तमन भार्या उता. " महासउणिपूयणरिऊ "तथा २ विद्याधरनी भडाश नि भने