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प्रश्नयाकरणम् मांसलरूपोलदेशभागा.-पीनी = पीरी-मागली= पुष्टी न पोरटेनमागी - फपोली येपो से तथा मचिरगय-पापचद-गठियमहानिगटा' अविरोइन पालचन्द्रसस्थितमहालगटा = भरिमादिनमगातोदिवा अष्टमीतिथिस
मन्धीत्ययः, अतएव पालगन्द्रः पूर्ण चन्द्रः अर्द चन्द्र इत्यर्थः, उत्सस्थितं - वत्सस्थानयुक्त तदाकारा मदन = शिाम् अटारगुलपमाण ग्लाट या ते तथा अर्द्धचन्द्रासारलगटा इत्यये । 'उपडिप्रगमोगरयगा' उप तिमतिपूर्णसोम्यवदना: पूर्णन्द्रियदाणाहकमुग्याः नागारतमगदेमा' छत्रा कारोत्तमानदेशाः = छत्राचीनतमस्तका 'घनिचियमुपदलरसगुग्णकडा गारनिमपिडियम्गसिरा' घननिचितमुपद रामगोन्नताटामारनिर्पिडिरामशिरस.
घनपन्लोहमुद्गरसनिलिव-सम्भृत गुनद स्नायुभि लक्षणोनत - रिशिष्टलास णयुक्त तथाफूटाकारनिभ-मासादशिखामा चतुरपात् पिण्डि के अग्रशि:मस्तकाग्रभागो येपा ते तथा सुन्दरला गयुक्तपिशायर्नुलगन्तकाग्रभागा है ऐसे कानो से जो युक्त होते है । नया-पोणमसल्कयोलदेसभागा) जिनके दोनों कपोल पीचर, और मासल होते है (अचिग्ग रयालचद सठियमहानिला ) तथा-जिनका महाललाट अष्टमी के अर्धचन्द्र के समान आकार का रोता है अगीन आठ अगुल प्रमाग आकार वाला होता है । ( उडवहपडिपुण्णसोम्मवयणा) तथा जिनका मुख, पूर्णचन्द्र के समान आल्हादकारक होता है। (उत्तागाम्तमगदेना) तथा मस्तक छत्र की तरह वृत्त-गोल और उन्नत होता है (घणनिचियसुब दलक्खणुण्णयकूडागारनिभपिडियरगसिरा) तथा मस्तक का अग्रभाग लोहनदर की तरह निचित-गाढ़-भरा हआ-तयो स्नायुओं से अच्छा तरह जकड़ा हुआ, तथा अनेक विध विशिष्ट लक्षणों से युक्त तथा मोसाद के शिग्वर के समान उन्नत तथा पिण्डिका-पिंडी के जैसा-गाल मेवा आन 432 युत उय छ “पीणममलकबोल्देसभागा" मना भने पार पाव२, अने भासद डाय छ “अचिरुग्गयालच दसठियमहानि लाहा" तथा मनावि ससाट सामना -यद्रना २१ रन डाय. मेट २मा माग पडे हाय छ । उडुबइपडिपुण्णसोम्मवयणा" तथा रेभनु भुम पूर्ण यन्द्रना २९ साइसाई २४ डाय छ “छत्तागारत भगदेसा" तभनु माथु छत्रन गण मन उन्नत खाय छ “घणनिचय सुबद्धलक्खणुण्णय कूडागार पिंडि यासिरा" तथा तभना मस्ताना मला माह બને જે નિશ્ચિત-ગાઢ-ભરેલે તથા સ્નાયુઓ વડે સારી રીતે બધાયેલે, તથા અનેક પ્રકારના ખાસ લક્ષણેથી યુક્ત તથા પ્રાસાદની ટેચ જે ઉન્નત તથા પિડીના