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सुदर्शिनी टीका म० ४ सू० ६ वलदेववासुदेवस्वरूपनिरूपणम् ____४१९ 'जणवयप्पहाणाहिं' जनपदप्रधानाभिः जनपदेपु देशेषु प्रधानाभिः सोत्कृप्टाभि 'मज्जाहि' भार्याभि =स्वीमि 'लालियता' लाल्यमानाः क्रीडयमानाः 'अतुलस-फरिसरसरूपगय अणुभपित्ता' अतुलशब्दम्पर्शरसरूपगन्धाश्चाऽनुभनन्तः अनुपमशब्दादि विपयमुसान्यास्वादयन्त' ते नि' तेऽपि तादृशा अपि चक्रवर्तिनः, 'कामाण अवितित्ता' कामानामवितृप्ता कामभोगेषु तप्तिरहिता एव, ' मरणधम्म ' मरणधर्म-मृत्यु ' उवणमति' उपनमन्ति-प्रान्पुनन्ति म्रियन्ते इत्यथे ॥ ०५॥ पुनः के इत्याह-- 'भुज्जो' इत्यादि
मूलम्-भुज्जो वलदेवा वासुदेवा य पवरपुरिसा महावलपरकमा महाधणुवियट्टगा महासत्तसागरा दुद्धरा धणुधरानरवसहा रामकेसवा भायरो सपरिसा समुदविजयमाइयदसाराणं पज्जुण्ण-पयिवसंवअनिरुद्धा निसढउम्मुय-सारणगय सुमुहदुम्मुहादीणं जायवाणं अध्धुट्टाणविकुमारकोडीणं हिययदइया देवीए रोहिणीए देवीए देवईए य आणंदहियभासचित सुख की राशिको भोगते हैं, तथा उनकी (अणेगवाससयमाउव्वतो ) सैकड़ों वर्षों की आयु होती है (जणवयप्पहाणाहिं भज्जाहिं लालियता) तथा वे समस्त देशो मे सर्वोत्कृष्ट ऐसी ६४ चौमठ हजार स्त्रियों के साथ क्रीडा किया करते है ( अतुलसद्दफरिस रसत्वगध य अणु-' भवित्ता) और उनके साथ जो अनुपम शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गध आदि पाचो इन्द्रियों के विपयों से जन्य सुखो का आस्वादन करते रहते हैं ऐसे (ते वि) वे चक्रवर्ती आदी भी ( कामाण अवितित्ता मरणधम्म उवणमति ) कामसुखों से अतृप्त ही बने रहते हैं और अन्त में मरण को प्राप्त हो जाते है । सू०५ ।। 4थी पास उस सुमनी राशिन! पास ७३ छ, तथा “ अणेगवाससयमाउव्वतो" भनु मायुष्य से ४ वर्षनु जाय छ, तथा "जणयप्पहाणाहलालियता" समस्त शामा अनुपम मेवी यास ७०२ श्री। साथे १ ४३ छ, भने “ अतुलसदफरिसरसरूवगधेयअणुभवित्ता" तेमनी साथे मनुपम શબ્દ, સ્પર્શ, રસ, રૂપ, ગધ આદિ પાચે ઈન્દ્રિયના વિષયેથી જનિત સુખે मनुभव छ मेवात “ ते वि" यति मा "कामाण" अवितित्तामरण धम्म उवणमति" भलागथी अतृH०४ २ छ भने मते भर पामे छ ।सू ।।