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प्रश्नध्याकरण पुनस्ते कीदृशाः ? इत्याह- 'अपरानिग ' इत्यादि
मूलग-अपराजिय सत्तमपणा रिउसहस्समाणमहणा साणुकोसा अमच्छरी अचवला अचंडामियमंजुलापलावा हसिय गंभीरमहरभणिया अन्भुनगयवच्छला करण्णा लरखण वजणगुणोक्वेया माणुम्माणपमाणपडिपुण्ण मुजायसव्वंग सुंदरगा ससिसोमगारा कंता पियदसणा अमरिसणा पयंड दडप्पयारगभीरदरिसीणना तालझया उविज्झगरुल केऊबलवगगज्जत दरिय-दप्पियमुद्रियचाणूरचूग्गारिट्रवसभ घाइणो केसरिमुहविप्फाडगा दरिय नागदप्पमहणाजमलज्जुणभंजगा महासउणिपूयणरिपू कसमउडमोडगा जरासध. माणमहणा तेहिय अविरलसमसंहियचदमडलसमप्पभेहिसूरमरीइकवयं विणिमुयंतेहि सप्पडिदडेहि आयवत्तेहि धरिज्जतेहि विरायंता ॥ सू० ७ ॥
टीका:- अपराजियसत्तमदणा अपराजितशत्रुमर्दना = अपराजितानअन्येरनिर्जितान् शत्रून् मईयन्ति ये ते तथा प्रबलशत्रुविनाशका इत्यर्थः, अतएव दूसरों का पल इनके समक्ष टिक नहीं सकता है, इसलिये ये अतिबल वाले रोते हैं, तथा (अनिया) शत्रुओं के शस्त्रके आघात से ये वर्जित रहते हैं, ऐसे ये बलदेव और वासुदेव भी कामभोगों को तृप्सिसे विहीन बनकर ही मरणधर्म को प्राप्त करते है ॥ सू० ६॥
फिर वे कैसे होते है सो कहते हैं-'अपराजिय' इत्यादि ।
टीकार्थ-(अपराजिय सत्तुमदणा) जो बलभद्र और नारायण આઘાતથી તેઓ રહિત હોય છે એવા એ બળદેવ અને વાસુદેવ પણ કામો सोना तृतिथी २डित नाa ar-ABH २हीन र भृत्यु पामे छ । सू०६॥ तमा लय छे तेनु वधु वर्णन ४२॥ ४ - “ अपराजिय" त्यादि
टी10-" अपराजिय सत्तुमद्दणा" ते मन्द्र भने नाया अपराजित