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प्रश्नव्याकरण मपि मनुजभाष-मनुप्योनि लभन्त प्राप्नुपन्त्यपि चेनहि 'तत्थरिय' तत्रापि च भान्ति-जायन्ते, 'अगारिया' अनार्यालेन्टाः कयानादयः कीदृशा ? इत्याह-'नीयकुल समुप्पण्णा' नीचटमगुत्पन्नाः 'आरियगणे गिलोयवज्मा' आर्यजनेऽपि लोकरावा यदि कदाचिन्मगधाचार्यदेश ममुस्पना अपि लोकवर्ज. नीयाः श्वपाकादिकुलसभूता भान्ति जनैम्तिरम्कता इत्यर्थः, पुनम 'तिरिक्त भूया य ' तिर्यग्भूताश्च पशु तुल्या विवशून्यत्वात् 'अफुसला' अकुशलाःवस्तुतत्वाऽनभिज्ञा ' कामभोगतिमिया' कामभोगतृपिता-तत्र कामौशब्दरूप लक्षणौ मोगा गन्धरसस्पर्शलसणास्तेषु पिता आसक्ताः 'जहि यत्र मनुष्य भवेऽपि लोकनायकुले 'निरयनत्तणी भवप्पश्चारणपणोलि पुणो वि ससाराव तो (तत्वविय) वहा पर भी वे ( अणारिया) अनार्यमनुष्यो-म्लेगे शक यवन आदि पर्यायो में ही (भाति ) उत्पन्न होते है । (नीचकुलसमुप्पण्णा ) ये अनार्यजन नीचकूल के होते हैं । (आरियजणेचि ) यदि कदाचित् मगध आदि आर्यदेश में उत्पन्न हुए तो ये वहा (लोयबजमा) लोकवाह्यजनो में-चाण्डाल आदि निदित नीचकुलो में-उत्पन्नहोते हैं। वहां सदा ये तिरस्कृत होते रहते है । ( तिरियभूयाय ) विवेक शून्य होने के कारण ये तिर्यच जैसे ही वहा बने रहते हैं (अकुसला) वस्तु तत्व से अनभिज्ञ रहते है । (कामभोगतिसया) शब्द, रूप लक्षण काम एव गध रस, स्पर्श लक्षण भोगो मे आसक्त रहते है, (जहिं ) लोक बाह्य कुलो मे मनुष्य भव प्राप्त कर लेने पर भी (निरियवत्तणी) नरक गमन के मार्गभूत, (भवप्पवचकरणपणोल्लि) भव परपरारूप प्रवाह के "लहिंति" थाय तो ५५ " तत्थवि य" "अणारिया " मनाय
२७, श४, यवन IE जतिभा " भवति " Gपन्न थाय छ "नी नकुल समुप्पण्णा" ते मनाया नीया जुना डाय छ “आरियजणेविन तेमा आय भगध माहि आर्यसूभिमा म पामे छतो ते त्या “ लोय वडझा" all नामा-या मनिहत नायजामा त्पन्न थाय छ त्या तशा सहा तिरस्कृत या ४२ छ “तिरिय भूयाय" Aasant हावाने કારણે તેઓ તે મનુષ્ય એનિમા હોવા છતા પણ તિય ચ જેવા જ હોય છે, ' असला" वस्तु तथा तेस। (सनलिज्ञ) AM! २९ छ, “कामभोगति सया" श७४, आभ, २स, , २५ मा भाग असत २ छ "जहि"
माघ मुनामा भनुष्य लव पाभ्या छत। ५५ ' निरयवत्तणी" न२४ गमनना राभूत भवप्पवचकरणपणोल्लि" सर ५२५२१३५ प्रवाना ads,तथा