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मनव्याकरणसूत्रे हिमादि बन्धनार्थ प्रासादादिपारोह पा रज्जुदानम् १८, इत्येतान्यष्टादशति धानि प्रसूतयः चौर्य करणानि ।
पुनः कीदृशास्ते परद्रव्यापहारिण ? इत्याह-'पाहयंगुणगा' पतिताङ्गोपाहा: पातितानि-नोटितान्यद्गानि हस्तपादादीनि, उपाहानि च-अलिकेशश्मश्वादीनि येपाते तथा कलुणा'कम्णा: दीना:-पापमलिना इत्यर्थः 'मुकोहकठगळतालुजिव्मा' शुप्फोष्ठमण्ठगलतालजिह्वा मोटो कण्ठा असरोच्चारणस्थान गल'-तदधो भागः ताल प्रसिद्ध एतेपा समाहारः, जल चिना शुप्फमोप्लकण्ठगलतालु जिहब येपा ते तथा, 'तण्हा इत्ता' तप्णार्दिता'-पिपासाऽऽकुलिताःसन्तः 'पाणिय जायता' पानीय याचमान.: ' गियजीरियासा ' गितजीविताशा
जीवनाशारहिताः 'वराकाः मन्दपुण्याः 'झपृरिसेहिं घाडियता ' वध्यपुरुपेपीने के लिये जल देना १७, पुराई गई भैस आदिको बाधने के लिये तथा मकान आदि की छत पर चढाने के लिये रस्सी देना १८। ये १८ प्रकारकी की चोरिया हैं ॥ ३ ॥
(पाइयगुवगा) ये परद्रव्यापहारी चोर हाथ पैर आदि अगों में तथा अगुली, केश, श्मश्रु दाढीमूछ आदि उपागोंमें कभी भी अक्षत नहीं रहते हैं ! (कलणा) ये सदा पाप से मलिन बने रहते हैं । तथा (सुक्कोट्ट कठग लतालुजिन्भा) पानी के विना ओष्ठ कठ गला ताल तथा जिह्वा ये सब इसके शुष्क होते (सूकते ) रहते हैं । (तण्हाइया) पिपासा से आकु लित होकर ये (पाणिय जायता)"पानी लाओ पानी लाओ" इस प्रकार याचना करते हुए (विगयजीवियासा) कभी २ अपने जीवन की आशा से भी रहित हो जाते हैं। (वरागा) इन अभागों को (वज्झ દેવા તે ક્રિયાને વશ કહે છે, (૧૬) ભોજન બનાવવાને અગ્નિ આપવો, (૧૭) પીવાને માટે પાછું આપવું અને (૧૮) ચેરેલી ગાય, ભેસ આદિને બાધવા માટે અને મકાન આદિના છાપરા પર ચડવાને માટે દેરડુ દેવું, એ ૧૮ (અઢાર) પ્રકારની ચોરી હોય છે કે
At--" पाइयगुवगा" ते ५२धननु म५९२६५ ४२ना। योर होना હાથ પગ આદિ અગે, તથા આગળીઓ, કેશ, નાક, કાન આદિ ઉપાગે કદી ५५ मक्षत (छेहाया विनाना) ता नथी “कलुणा" तसा पापथी सही भलिन २९ छ, तथा “सुकोट्ठकठगलबालुजिभा " तमना , ४४ ग, ताण तथा म पाली विना शु (सूायदा) २ छ " तोहाइया" तर सथी व्यारा थने ते सो "पाणिय जायता" " पाहावी, पाणी, पाणी दावो" मेवी यायना ४२ता ४२ता "विगय जीवियासा" या२४ तो वधानी माशा पय छोडी हे छ “वरागा" त मिन्यासमाने "वज्झपुरिसेहि" स्थान