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प्रश्नयाकरणसूत्रे 'पधुविप्पहीणा' बन्धुविहीणा बन्धुरियुक्ताः, 'दिसोदिसि पिपिरसता' दिगो दिश निमेक्षमाणा: एफरया दिगोऽन्या दिश पश्पन्तः 'गरणमयुधिग्गा' मरणभयोद्विग्नाः मृत्युभयव्याकुला आघायणपउिनारसपापिया' आपातनातिद्वार समापिता=आघातनपतिद्वार यभूमिहार तन सपापिता:नीता ये ते तथा, 'अवण्णा' अधन्याः भाग्यहीनाः अदत्तादायित्लाव, 'सूलग्गफिटम्गमिण्गदेह।' शूलाग्रविलग्नभिन्नदेहा , तत्र-शूलाग्रे रिलग्न आरोपणेन सलग्न: मिनश्च देही येपा ते तथा 'ते य' ते चअदत्तादायिन 'तत्य' तनातनद्वारे अथवन्ध मारणनिर्भर्सनशारोपणादि यातनास्याने 'परिकप्पियगुपगा' परिकल्पिता गोपाड़ा कीमभृतिशस्त्रे कतितकर्णनासिकायाः । कीरति ' क्रियन्ते, दण्डविधायिराजपुरुपैरिति ॥ मू० १६ ॥ ये बिना वधु के होते है । (वयुधिप्पहीणा) बाधवनन होने पर भी वे इन्हें छोड़ देते है। इसलिये ये वन्धु हीन होते है (दिसोदिस विपेक्वता) विचारे ये एक दिशा से दूसरी दिशा का ही अवलोकन करते रहते है
और (मरणभयुधिग्गा ) मृत्यु के भय से व्याकुल बने रहते है। इस तरह की स्थिति संपन्न बने हुए इन अदत्तादायी जनों को वे राजपुरुष लाकर (आघायणपडिदुवार सपाविया) वभ्यभूमि के द्वार पर उपस्थित कर दिये जाते हैं। क्यो कि (अधण्णा) ये अदत्तग्राही जन अभागे होते हैं। (सूलग्गविलग्गभिण्णदेहा) इन चौरों का शरीर सूल के अग्रभाग पर आरोपित कर देने के कारण छिन्न भिन्न हो जाता है । (ते य तत्य) वहा उस वध, वध, मालण, निर्भर्सन, सलारोपण आदि यातना के स्थानमें उनके ( परिकप्पियगुवगा) अग एव उपाग अर्थात् नाक कान आदिको कैची आदि शस्त्रों से काट दिये जाते हैं । सू-१६ ॥ मधुभान मलावतमा समन्यु डाय छ “ विप्पहीणा" मधुमना डाय
तमना द्वारा मना त्याप राय छ, " दिसोदिस विपेक्सता" मेवा પરિસ્થિતિમાં તે બિચારા એક દિશા તરફથી બીજી દિશા તરફ જોયા કરે છે भने “ मरणभयुव्विग्गा" भरना भयथी व्याज मन छ । प्राता स्थितिमा भूये ते याने पुरुष सापान “आघायणपडिदुवारसपा पिया" वयानना ४२वारे ०४२ ४२ छे २ है “ अधण्णा " ते महत्तपाडी-यो२ साठे। भानसीम डाय छे “सूलग्गविलग्गभिण्णदेहा" त योरोना શરીર શૂળીના અણીદાર ભાગે પર ચડાવવાને કારણે છિન્ન ભિન્ન થઈ જાય छ भने "ते य तत्थ" त्यात १५, , मारण, निलसन, शुसारे। माहि यातना पान स्थान तमना ' परिवस्पियगुणगा" पानी, ससे કે નાક, કાન આદિને કાતર આદિ શસ્ત્રો વડે કાપી નાખવામાં આવે છે ?