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मुदशिनी टीका अ०३ सू० १४ चौरा कि फल प्राप्नुवन्तीतिनिरूपणम् ३२३. पुरतउरकडग-मोडणेहि सवद्वाय नीससता सीमावेढ अरुयालचप्पडगसधिवधण तत्तसलागसूइ आकोडणाणि तच्छण विमाणणाणि य खारकडुय तित्तनावणजायणकारण-सयाणि वहुयाणि पावियंता, उरघोडीदिण्णगाढपेल्लण-अट्टिकसभग्गसंपसुलिया गलकालक-लोहदड-उर-उदर बत्यि-पिट्टि-परिपी लिया मत्थंतहियय-सचुपिणयगुवंगा आणत्ति कि करेहि केइअविराहि य वेरिएहि जमपुरिससंनिभेहि पहया ते तत्थ मंदपुण्णा चडवेलावह पट्टपोराच्छिवा कसलत्तवरत्तवेत्तपहारसयतालियंगुवगा किवणालवतवम्मवणवेयणविमुहियमणाघणकोणनियलजुयल-संकोडियमोडिया य कीरति निरुच्चारा असचरणा एया अण्णाय एवमाईओ वेयणाओ पावा पावति ॥ सू० १४॥
टीका-पूर्वोक्ताः मन्दपुण्याः 'सपुडकनाड-लोहपजर-भूमिघरनिरोहकूनचारग कीलगवचक्कविततधणखभालणउद्धचलगवधणनिहम्मणाहिय विहेडियता' तर 'सपुडकराड-सम्पुटकपाट = पिहितकपाट लोहपञ्जर तथा 'भ्रमिवर' भूमिगृह-भूमेरन्त ह 'भोवरा' इति भापा प्रसिद्ध च तत्र यो 'निरोह' निरोधा प्रवेशन, तथा 'कूव' कूपः अन्धकूप., 'चारग' चारका इन्दिगृह 'कीलग'
फिर वे क्या फल पाते है ? सो कहते हैं-'सपुडकवाड' इत्यादि।
टीकार्य-येचोरजन (सपुडकवाड लोहपजर-भूमिघरनिरोह कृव चारग कीलग-जूयचक्कविततधण-खभालण-उद्धचलणबवण-विहम्मणायि विहेडियता) (सपुडकवाडलोहपजर) बद ह कपाट-युगल जिन्हों के ऐसे लोह के पिंजरों में तथा (भूमिघरनिरोह ) तलघरों में बद कर दिये जाते हैं, (कूव ) अधकृप मे पटक दिये जाते है, (चारगकीलग) यदिगृह में । भी ज्यु ३० भणे छेते सूत्रा२ ४ -"सपुडकवाउलोहपजर" त्या
थ-ते न्यारीने “सपुडकवाडलोहपजर' ५५ मारावासोढाना पार रामा, तथा “ भूमिधरनिरोह " सायरामा पूरी हेवामा मा छ, “ कूत्र" Autsun tarin ५८पामा आवे छे, "चारगकीला" अराउमा यी