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दर्शिनी टीका अ० ३ सू० ७ सग्रामवर्णनम्
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विकृतः = क्रोधावेशेन विचित्ररूपः गाढः = मर्मभेदी दत्तः शत्रुभि• महारो येषा ते तथा, अत एव मूर्च्छिताः = मूर्द्धा प्राप्ताः, लुठन्तः = भूमौ लुठन्त, विला:= व्याकुलाथ तेपा विलापाः = ' हा हतात्रयमि' - त्याद्याकन्दशब्दाः, तैः करुणो= दयाजनको यः स तथा वन, पुनः कीदृशे ? इत्याह- ' हयजोह - भमत तुरगउद्दाममत्तकुजरपरिसकियजण- णिव्युव णिज्झय- भग्ग - रहवर - नट्टसिरकरिकले वराकिण-पडियपहरण - विकिन्नाभरणभूमिभागे' हतयोधभ्रमत्तुरङ्गोदाममत्तकुञ्जरपरिशङ्कितजननिर्मृलछिन्न- जभग्नरथवरनष्टशिरः करिकलेवराकीर्णपतितमहरण त्रिकीर्णा मरणभूमिभागे' तत्र - 'हयजोहभमततुरग' - हतयोधभ्राम्यत्तुरगः - हताः = मृता योधाः =अश्वारोहा सवार इति भाषा प्रसिद्धाः येषा, तथाभूता भ्राम्यन्तः = इतस्ततो धावन्तः तुरगाः श्रश्वा यस्मिन् स तथा 'उदाममत्त कुजर परिसकियजण'- उद्दाममत्तकुञ्जरपरिशङ्कितजन. - उदाममत्तकुञ्जरेभ्यो = निरङ्कुशमदोन्मत्तदस्तिभ्य. परिश ङ्किता = शङ्काकुला. जना यस्मिन् स तथा, 'णिन्नुवडिण्णज्झयभग्गरहवर '— निर्मूलडिन्न वजभग्नरथवराः - तत्र निर्मूला = मूलरहिता: = नजदण्डेभ्यो निस्सृताः
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से विचित्ररूप गाढ मर्म भेदी प्रहार शत्रुओ द्वारा दिया गया है और इसी से जो (मुच्छिय ) मृर्च्छा को प्राप्त होकर ( रुलत ) भूमि पर इधर से उधर लोट रहे हैं एव ( विभल ) व्याकुल होकर (विलाव ) 44 हा मैं मारा गया " इत्यादिरूप से विलाप कर रहे है ऐसे योद्धाओं के विलापो से जो ( कलुणे ) दयाजनक बना हुआ है तथा जो (यजोहभमततुरग ) अपने सवारो के मर जाने से इच्छानुसार इवर उधर घूमते हुए घोड़ों से युक्त हो रहा है, तथा जहाँ ( उद्दाममत्तक्रुजर परिसकियजणे ) उत्कट मदवाले हाथियों से, वध की शका के भय से मनुtय व्याकुल हो रहे हैं ( णिन्नुकुछिण्णज्झयभग्गर हवरे ) जहा निर्मूल दडा रहित और छिन्न-फटी हुई ध्वजाऍ और भग्न हुए श्रेष्ठ रथ पडे है
આવેલા શત્રુઓ દ્વારા વિચિત્ર રીતે ભયર મમ`ભેદી પ્રહાર કરાયા છે અને તે जरो लेगो " मुच्छिय" भूवि थाने " रुलत " भीन पर आभ तेभाणोटे छे भने ' त्रिमल " ध्यान्न जनेस है, 'विलाव " अरे ! મને મારી નાખ્યા ” ઈત્યાદિ પ્રકારે વિલાપ કરે છે, ચેદ્ધાઓના વિલાપથી જે "कलुणे" ध्यान मनेस छे, तथा ? "हयजो इभमततुरग " पोताना सवारी भी भवाथी रिछानुसार भाभ तेभ घूमता घोडाभोथी ने युक्त है, तथा न्या "उद्दामम तकु जर परिसकियजण " भहोन्मत्त हाथीगोद्वारा ज्यराध भवानी लयथी भागुनो व्याडुण गनेसा छे, "णिन्नुष द्विष्णज्ज्ञयभग्गरहबर " ज्या निर्माण हुडा रहित