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सुदर्शिनी टीका अ०३ सू० ९. अदत्तादानविषयसागरनिरूपणम् २९ पक्खलिय - चलिय-विपुलजलचक्वाल-महानईवेग-तुरिय आपूरमाण-गभीरविपुल-आवत्त-चचल-भममाण-गुप्पमाणु-च्छलत-पन्चोणियत - पाणिय-पधाविय-खर-फरुस-पयड-बाउलिय-सलिल-फुट्टत-नीचि-कलोल-सकुल' समन्ततः क्षुभितलुलितचोलुम्यमाणमस्खलितचलितपिपुलजलचक्रयालमहानदीवेगत्वरितापूर्यमाणगभीरविपुलावर्तचञ्चलभ्रमगोप्यमानोच्छलत्पत्यवनिटत्तपानीयप्रधावितखरपरुपप्रचण्डव्याकुलितसलिलस्फुटद्वीचिकल्लोलसङ्कुलम् , तर 'समतोसुभिय' समन्ततः क्षुभित-पननाऽऽघातेन सर्वतो व्याकुलित 'लुलिय' लुलित च तटप्रदेशमाप्त तथा 'खोसुब्भमाण' चोक्षुभ्यमाणम्-अतिशयेन पुन' पुनर्वा महामत्स्यादिभिर्व्याकुलीक्रियमाण 'परखलिय' मस्खलित = पर्न तादीना महाशिलादिप्वाघातेन स्खलित पश्चात् ' चलिय' चलित-स्वस्थानाद् गमन प्रवृत्त 'पिउल ' विपुल-विस्तीर्ण 'जलचकवाल' जलचक्रवाल-जलसमूहः यत्र ताः - क्षुभितलुलित चोक्षुभ्यमाणप्रस्खलितचलितविपुलजलचक्रवालास्तथा विधाश्च या ' महानईवेग' महानद्याः गगायमुनाधास्वासा वेगैः 'तुरिय' त्वरित =शीत्रम् ' आपूरमाण' नापूर्यमाणो यः सागरः स तथा। गभीरा आगाधाः विपुला:-विशालाः ये 'आवत्त' आवर्ताः चक्राकारजलभ्रमाः तथा चञ्चल यथास्यात्तथा 'भममाणा' भ्रमन्ति 'गुप्पमाणा' गोप्यमानानि-व्याकुली भान्ति से चारों तरफ क्षुब्ध हुआ (लुलिय) तट प्रदेश को प्राप्त हुआ-तटतक पहचा हआ (खोखुन्भमाण) महामत्स्यादि जलचर जन्तुओ से व्या कुल किया गया (पक्खलिय) पर्वतादि की महाशिवाजों आदि के आघात से स्खलित हुआ फिर (चलिय) चलित-स्वस्थान से चलित हुआ (विउला ) विस्तीर्ण (जलचकवाल ) जलसमृह जहां है ऐसी (महानईवेगो) गगा यमुना आदि महानदी के वेगो से (तुरिय ) त्वरित-शीघ्र (आपरमाण) जो भरा जा रहा है। तया जो (गभीर) अगाध (विउल) विशाल (आवत्त) ओवों - (चक्राकार जलभ्रमणों) से तथा ( चचल ) चपल ( भममाण) घूमते हुए (गुप्पमाण ) व्याकुल हुए यामेर क्षुध थने “ लुलिय" प्रदेश सुधा पहायान “सोक्खुम्भमाण" भलामत्स्याय२ ७ २१ व्या रायेद "पपलिय" ताहिनी भहाशितासी माहिना माघातथी मलित थने ५७ " चलिय" यलितस्वस्थानथी यसित ने “ विउल" विस्तीf “जलचक्वाल" समूड rD वी 'महानईवेगो' ॥ यमुना माहि भानही माना गया 'तुरिय'
उपथी 'आपूरमाण' मरा २९८ छे तथा 'गभीर' अ॥ध 'विरल" विश " आवत्त" माथी तथा "चचल" या "भममाण" घूमता