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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ११ तस्करकार्यनिरूपणम्
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तापसनिवासः, निगमः =णिग्जननिवासः जनपदोदेशस्तान ' धणसमिद्धे ' धनसमृद्धान्=धनधान्यसम्पन्नान् ' हणति' नन्ति = विनाशयन्ति तथा ' थिरहियया ' स्थिर हृदया=अदत्तादाने निश्चलचित्ताः छिन्नलन्नाः = जातिकु दादिलज्जावर्जिताः 'दिग्गहगोग्गहा य' पन्दिग्रहगोग्रहाथ = वन्दिनः स्तुतिपाठोपजीविनस्तेपां ग्रह = ग्रहण गवा च ग्रहण चोरणमित्यर्थ, ' गेण्दति ' गृह्णन्ति = कुर्वन्ति तथा ' दारुणमई ' दारुणमतयः = घोरकर्माचरणबुद्धय ' निधि वा ' निष्कृपाः = निर्दयाच 'णिय' निज = स्वजनमपि ' इणति ' घ्नन्ति = नाशयन्ति तथा गेहसन्=ि गृहभित्तिं ' छिदति ' छिन्दन्ति । ततथ ' जणवयकुलाण' जनपदकुलानां 'निक्खि
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स्थान होता है उसका नाम पत्तन है। तापस लोगों का जो निवास स्थान होता है उसका नाम आश्रम है । वणिग्जन जिसमें रहते हों उसका नाम निगम, एव देश का नाम जनपद है । इन स्थानों को लूटने वाले तथा नष्ट भ्रष्ट करने वाले ये जन (विरहिया) अदत्तादान करने में निश्चलचित्त रहते हैं (छिन्नलजा ) इन्हें जाति, कुल आदि की लज्जा कुछ भी नहीं होती है। (बदिग्गहगोग्गहा य) ये स्तुति पाठकों को लूट लिया करते है और गायों को भी चुरा लिया करते है । (दारुणमई) इनकी मत बडी दारुण (भयकर) होती है-भयकरसे भयकर कर्म करने में भी उन्हे सकोच नहीं होता है । (निक्किवा) ये सदा दया से रहित होते हैं । (णिय हणति ) अपने निजजन को भी ये जान से मार डालते हैं (गेहसधि ) घरों की भित्तियों तक को भी ये ( छिंदति ) तोड़ डालते
| ( जणवयकुला ) दूसरों की रक्खी हुई - धरोहररूप में स्थापित की
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સ્થાનને પત્તન કહે છે તાપસ લેાકના નિવાસસ્થાનને આશ્રમ કહે છે વણિક લેાકેા જ્યા રહે છે તે નિગમ અને દેશને જનપદ કહે છે તે સ્થાનાને લૂટनारा तथा नष्टभ्रष्ट उरनारा ते सोधे “ थिरहियया અદત્તાદાન-ચારી કરવાને भाटे दृढ निश्चयी होय छे " चिन्नलज्जा " तेभने लति उण माहिनी सडेट पशु साथ होती नथी "बदिग्गहगोग्गहाय" तेयो स्तुति श्नाशने प टूटी से छे, भने गायेोने पशु योग लय हे " दारुणमई " तेभनी लति અતિ દારુણ હાય છે-ભય કરમા ભયકર કૃત્ય કરતા પણ તેમને સકોચ થત नथी " निक्रिया " तेथेो महा घ्याहीन होय छे, “णिय हणति " पोताना સ્વજનાને પણ તેઓ મારી નાખે છે, हस " धरती हिवासाने पशु तेथे! " दित्ति " धरनी हिवासाने पशु तेथे "छिंद ति 66 जणवयकुलाण ” ખીજાએ અનામત થાપણ તરીકે
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તાડી પાડે છે
મૂકેલ
"" घणघण्णव्व
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