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सुदर्शनी टीका १०३ सू० १२ तस्करस्वरूपनिरूपणम् ____टीका-'अयसकरा' अयशस्कराः अकीर्तिमन्तः भयङ्कराः ' तकरा' तस्कराः अदत्तग्राहिणः चोरा इत्यर्थः, 'अज्ज' अब अस्मिन् दिवसे 'कस्स' कस्य धनिनः इति एव विध यन्मनसि चिन्तित तत् 'च' द्रव्य-धन हरामः= चोरयाम इति-एव प्रसार 'गुज्झ' गुह्मगुप्त 'समामतण' समामन्त्रण-विचारणा 'करेति' कुर्वन्ति । तथा ' रहुयस्सनणस्स' बहुकस्य जनस्य 'कझकरणेसु' कार्यकारणेसुकर्मानुष्ठानेपु 'विग्धकरा' विघ्नराः विघ्नोत्पादकाः 'मत्तप्पमत्तपसुत्तवीसत्यजिदघाई' मत्तममनप्रसुप्तविश्वस्तछिद्रघातिनास्तत्र मद्यपानादिना मचान प्रमत्तान् प्रकर्पण मत्तान् प्रसुप्तान विश्वस्ताश्च छिद्रेण-छिद्र-प्राप्य घ्नन्ति
फिर वे कैसे होते हैं सो कहते है-'अयसकरा' इत्यादि।
टीकार्य-(अयस करा) इनकी दुनिया में अकीत्ति फैल जाती है ये सब जगह गई से विख्यात हो जाते हैं, (भयकरा) इनके नाम श्रवण से भी लोगों के हृदयों में भय का सचार हो जाता है। इस तरह के ये (तकरा) अदत्तग्राही-चोर (अज्ज कस्स व्व हरामो त्ति) "आज किस धनी का मन धारा द्रव्य हरण करना चाहिये" इस प्रकार की (गुज्छ) गुप्त (समामतण) विचारणा ( करेंति ) किया करते हैं। तथा (यहुस्स जणस्त ) अनेक मनुष्यों के (कज्जकरणेसु) कार्यों में ये (विग्यारा) विघ्नोत्पादक हुआ करते हैं । (मत्त-प्पमत्त. पसुत्त वीसत्यछिद्दघाई ) (मत्तप्पमत्त) मद्यपानादिक से मत्त तथा प्रमत्त बने हुए व्यक्तियों को ( पसुत्त) सोये हुए मनुष्यों को, एव (वीसत्थ) अपने ऊपर विश्वास करने वाले प्राणियों को ये (छिद्दघाई)
तमा वा य त नु वधु वर्णन ४रे छ-" अयसकरा" या
सार्थ-"अयसकरा" सभी इनियामा तमनी मतदाय छ तेया त्याथी ४२४ स्थणे ५४य छ, 'भय करा" तभनु नाम सामना ! सोडानमा लय : थाय छे म त " तकरा" या " अज्जकस्स दव्य हरामो ति" "मारे या धनिनु धन श न " से प्रा २नी “गुज्झ" शुभ " समामतण" विया२९॥ " करे ति" र्या ४२ छ तथा "बहुयस्स जणस्स" अने भासान “कज्जकरणेसु" आर्याभा तसा विग्धकरा" विना थया ४२ छ “मत्त-प्पमत्त-पसुत्तवीसत्यछिद्दघाई " " मत्तपमत्त" ॥३
मालपान भत्त तथा प्रमत्त पनेता सोने “ पसुत्त" यता सोने, मन “वोसथ " पाताना ५२ विश्वास भूना बोजोन तो “ दिघाई"