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सुदर्शिनी टीका १०३ सू० १० पुनरपिसागरस्वरूपनिरूपणम् ३०५ बलिहोमधूवउवयारदिण्णमहिरचणाकरणपययजोगपययचरिय । विरचितालि होमधूपोपचारदत्तरुधिराचनाारणप्रयतयोगप्रयतचरित = तत्र विरचित्तः = कृत वलिना-द्रव्योपहारेण होमेन अग्नी हवनेन पेन-धूपेनचोपचारो पैस्ते तथा दत्त रुधिर समर्पित शोणित यत्र तदेवभूत यदर्चनाकरण तर प्रयता:-तत्परा ये ते तधा, योगमयताश्व-पोतादिभिर्व्यापारे निरता ये ते तथा तैः तत्रस्थित चरितः सश्रितो यः स तथा तमेतादृश सागरम् । पुनः कीदृश' मित्याह-'परियतजुगतकाल कप्पोवम' पर्यन्तयुगान्त गलकल्पोपम-पर्यन्तयुगस्य-सकलेपु युगेषु मध्ये चरमयुगस्य योऽन्तकालः प्रलयकाल स एव कल्पस्तेनोपमा सादृश्य यस्य स तथा त 'दुर तमहानई-नईवा-महाभीमदरिसणिज्ज' दुर तमहानदी नदीपतिमहाभीमदर्शनीय-दुरन्ताः दुप्पारा या महानद्यः गङ्गापानद्यश्व-अन्याः सामान्याकरना पड़ता है (विरइययलिहोम-धूब-उवयार-दिण्ण-रुहिर-च्चणाकरण-पयय-जोगपययचरिय) तथा (विरइयरलिहोमधूवउवयार) नौकाओंके अटक जाने पर जहा जहाजों से व्यापार करने में लगे हुए मनुप्यों द्वारा-सार्थवाहो द्वारा-विविध प्रकार की भेटे दी जाती है, अग्निमें धूप जलाया जाता है- तथा (दिण्ण हिरच्चणाकरणपयय) रुधिर का समर्पण रूप पूजा में लगे हुए ऐसे ( जोगपयय ) व्यापारी लोगों से (चरिय ) से वित है । तथा (परियत जुगंतकालकप्पोवम ) समस्त युगों के मध्य में चरम युग का प्रलयकालरूप कल्प के जैसा तु (दुरतमहानई नईवइ-महाभीम दरिसणिज ) (दुरत ) जिनका पार करना कठिन है ऐसी ( महानई नईवड ) गगा आदि महानदियों का तथा अन्यसाधारण नदियों को जो पति हैं, इसी कारण यह ( महाभीमदरिसणिज्ज)देखने बलिहोम-धूप-उपयार-दिण्ण-रुहिर-च्चणाकरण-पयय-जोगपययचरिय " तथा " विरइयवलिहोमधूवउपयार" नौ । सटी rat arel पडा। द्वारा વેપાર કરનાર લોકો દ્વારા (સાર્થવાહો દ્વારા) વિવિધ પ્રકારની ભેટ દેવાય છે, ममिमा ५५ मा वाम! मावे छ, तथा “दिण्णरुहिरच्चणाकरणपयय " रुधिरना सभा ३५ पूनमा सादा मेवा 'जोगपयय " व्यापारी atथी “चरिय " २ पवित छ, तथा " परियतजुगतकालकप्पोपम" रे सा युगानी पध्ये Dru युराना प्रत्या३५ (पना वो छ, “ दुर तमहानईनईवइ-महा भीमदरिसणिज्ज” “दुर त" रेने की भुश्स छ मेवी “महान ईनईवइ" मा आदि मडा नीसाना तथा vil सामान्य नहीगाना रे, पति छ, भने ते २ रे “महाभीमदरिसणिज्ज" ने भापमा सय ४२ प्र० ३९