________________
सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० २ अदत्तादाननामनिरूपणम्
२६९
नाम उत्क्षेप है २०| चोर इस द्रव्य को ले जाकर असुरक्षित अवस्था मे इधर उधर रस देते हैं-डाल देते है, इसलिये इनका नाम विक्षेप है २९॥ चोर चुराकर जन इस द्रव्य को विभाग करते हैं, तन तुलादिक से कमती बढ़ती तौलते है एकमा हिस्सा नही करते हैं, इसलिये इसका नाम कृटता हे २२ | यह कर्म करनेवालों के कुलो को फलक लगता है इसलिये इसका नाम लमपी है २३| अदत्तादानमे परके द्रव्यको हरण करने में तृष्णा रहती हैं इसलिये इसका नाम काक्षा है २४ । चोर गर्हित जल्पना करते हैं, अर्थात् चोरी करलेने पर भी " मैंने चोरी की है" इस बात को स्वीकार नही करते प्रत्युत उसे छुपाने की ही चेष्टा करते हैं, तथा जिस समय वे चोरी करने के लिये चलते है तो किसी अपने दृष्ट की प्रार्थना करके ही चलते है, इसलिये इसका नाम लालपन और प्रार्थना हे २५ | यह कृत्य विनाश का हेतु होने से विनाशरूप एव समस्त आपत्तियों का कारण होने से व्यमनरूप है इसलिये इसका नाम आगसना एव व्यसन है २६ । परधन के हरण करने की अभिलापा इसमे बनी रहती है इसलिये इसका नाम इच्छा, तथा पर के वन को हरण करने के लिये इसमे अत्यत मूर्च्छा भाव होता है इसलिये इसका नाम मूर्च्छा है २७ | अप्राप्त द्रव्य की प्राप्ति की वाञ्छा तथा प्राप्त द्रव्य की अविनाशेच्छा, ये दोनों अदत्तादान का हेतु ह इसलिये इसका नाम
थोरौना हाथमा लय हे, तेथी तेनु नाम उत्क्षेप घे (२१) थोर ते द्रव्यने ચારી જઈને અસુરક્ષિત હાલતમા ગમે ત્યા મૂકી દે છે તેથી તેનુ નામ વિક્ષેપ જે (૨૨) ચાર ચેરી કર્યા પછી ત્યારે તેના ભાગ પાડે છે ત્યારે ત્રાજવા આદિથી વવારે કે આદ્ઘ તાલે એક સખ્ખા ભાગ પાડતા નથી, તેથી તેનુ नाम कृटतो (२३) मा नृत्य उग्नारना ने उस लागे छे, तेथी तेनु नाम फुलमपी ) (२४) महत्ताहान अणु श्खामा भीमनु द्रव्य हरी सेवानी तृष्णा रहे छे, तेथी तेनु नाभ काक्षा घे (२५) और गति ना रे छे એટલે કે ચારી કર્યા પછી પણ પાતે ચારી કરી છે, તે વાતને સ્વીકાર કરતે નથી, પણ તેને છૂપાવવાના પ્રયત્ન કરે છે, તથા જ્યારે તેએ ચેરી કરવા ઉપડે છે ત્યારે પેાતાના ઈ ઈષ્ટ દેવની પ્રાથના કરીને જ જાય છે તેથી તેનુ नाम लालपन ने प्राथना के (२६) ते नृत्य विनारानु अरण होवाथी विना રાનુરૂપ અને સઘળા આપત્તિયેનુ કારણ હાવાથી વ્યસનરૂપ છે, તેથી તેનુ નામ आशसना ने व्यसन छे (२७) ते नृत्य डरनाग्ने परधननु डुगु डरवानी અભિલાષા રહે છે, તેથી તેનુ નામ ર્ી તથા પારકાનું ધન ગ્રહણ કરવાની