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प्रभव्याकरण
'अहिमरा' अभिमरा:-धनादिगमेन मरणाभिमग्या , मरणमयरहिता उत्यर्थ , अथवा चौर्याभिमुग्याः सन्त. परान माररन्ति येते तथा दहान्तभांवितण्यये , 'अणभजगा' प्रणभप्रकाण ममन्ति-न ददति येते तथा 'भगमपिया' भग्गसन्धिका भग्नः सन्चि: मिनादिस्नेगे यस्ते तथा उष्टजनप्रेमवर्जिता 'राय दुहगारो' राजदुष्टकारिणः राजनीतिरिद्वावरणाः 'विसयनि छढलोगवझा' पियनिक्षिप्तलोकमामा-विषयाव-जनपदात् निसिता निकामिना' अत एवं लोकनायाः जनाहिता । उपगगामघायगपुरवायगपय वायगआदीवगतिस्य भेयगा' उद्रोहक ग्रामगनक-पुरातक-पथिधातर-ऽऽदीपातीय भेदका तत्र उद्रोहकाच हिंसका ग्रामघातका.ग्रामनागरा, ग्वातरा नगरविधसकाः पथि ये परगन्य में विशेष लोलुप होते हैं। (अहिमरा) पनादिक के लोभ में पड़कर ये मरण के भी अभिमुप रते है-उन्हें मरण का भय नहीं होता है। अथवा चौर्य कर्म में प्रवृत्ति करने पर दमरों को भी उम समय वाधा डालने पर मार डालते हैं। (अणभजगा) इनके ऊपर किसी का कर्जा हो तो भी ये उसे नहीं देते हैं। (भग्गसरिया) ये अपने इष्ठ मित्रादिकों से भी प्रेम नहीं करते हैं। उन पर स्नेह करने से अथवा उनके स्नेह से ये वर्जित रहते है। (रायट्ठगारी) राजनीति के विरुद्ध इनका सदा आचरण रहता है। (विसयनिच्छढलोगवज्मा) जनपद सेय निकाल दिये जाते है, इसलिये ये लोकवाय होते है । (उद्दहगगामायग पुरवा गपथचायगादीवगतित्यभेयया) (उत्ग) ये घट भारी द्रोही होते हैं जिनपर इनकी वक्रदृष्टि पड़ जाती है उसकी फिर कुशल नहीं (गामघायग) गावों के गाव नष्ट कर डालते है। (पुर घायग) नगरी तेगा ५२द्रव्यमा अतिशय सोधुप हाय छ “अहिमरा" धनानि सोलमा पीन તેઓ મરણની પણ સન્મુખ રહે છે-તેમને માતની બીક લાગતી નથી અથવા योरी ७२वा ता तेभा २माजीसी ३५ थनारने भारी नाचे छ " अणभजगा" तेभनी पासे 5 नुले य तातेस ते युवती नथ “भग्गसधिया" तसा પિતાના ઈષ્ટ મિત્રાદિ તરફ પણ પ્રેમ રાખતા નથી, તેમના પર સનેહ રાખવાથી अथवा तभने। स्नेह प्रात ४२पाथी ते २डित डायछ "रायदुगारी" नातिया विमानतेन साय२५ उमेश २छ “ विसयनिन्छढलोगवामा" शक्त्यमाथी तमन डाकी दवाभा मावे छे तेथी ते साय छ “उद्दहगगामघायग पुरघायगपथपायगआदीवगतित्यभेयया " " उद्दहग" तेमा मारे द्रोही डाय छ,
भना ५२ तेमनी टि पडे छ तेमनी सलामती रहेती नथी " गामघा यगा"तेसा गामाना गाभा नष्ट ४२! ना छ “पुरचायग" नगरोना नाश