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मनापापरणसूत्र सञ्चाल्ने, उद्यता भताः करा हस्ताः सैनिकानां या स तथा तत्र, अति मोधशोणीकृतानना भयडरस्वस्पा योधाः सततमध्यग्रा अान्ता अविच्टेन शस्वपहरणसमाप्ता यस्मिन् सग्राम मन्तीत्यर्थः । 'अमरिसरसतिब्बरतनिहारि पन्छे' अमर्पयशतीवरक्तनिरिताक्षे अमर्पगेनप्रोपगेन तीनरफ्ते अत्यन्त लोहिते, निर्दारित स्फारित चाक्षिणी योघाना यस्मिन , तत्र । तथा 'वेरदिहि फुद्धचैहियतिवलीकुडिलभिउडियर गरे । दृष्टिलुद्धचेष्टितरिवलीकुटिलभृकुटी कृतललाटे-तत्र रदृष्टया वैरमारनया ये कुदाकुपिता भटाम्तेष्टिता त्रिवलीललाटसोचजनिवगिरेग्यास्पा तथा कुटिला भृकुटी कता ललाटे-भाले या स तथा तन विपरिणयनरसहस्ममिवियमियरले' धपरिणतनरसहस्रविक्रम विज़म्भितरलेयधेप्रतिपक्षिहनने परिणतानां तत्पराणा नरसहस्राणाम् अनेक सहस्रसुभटाना पराक्रमेण चिम्भित-विक्षोभित बलशानुसैन्य शनुमामय वा यत्र स तथा तस्मिन् , एतादृशे सग्रामे अतिपतन्तीत्यनेनाऽन्यय ॥ सु० ६॥ हारकरणुज्जयकरे ) द्विपक्षी सुभटों के ऊपर प्रहार करने के लिये जहां सुभटो के हाथो का सचालन हो रहा है तथा ( अमरिमवसतिव्वरत निधारितच्छे) जहाँ पर ( अच्छे) वीरो के दोनो नेत्र (अमरिसवस) क्रोधके वशसे (निद्दारिन) अपलक-निनिमेष होकर (तिव्वरत्ता) अत्यत रक्तवर्ण के बन रहे है,तया (वेरदिहि) वैरकी भावनासे (कुद्ध) कुपित हुए भटो द्वारा (चेट्टिय) चेष्टित-की गई ( तिवली ) अपनी २ त्रिवलीतीन रेखा, तथा (कुडिलभिउडिकय) कुटिल- टेढी भ्रकुटी ललाट ऊपर जहा की गई है, तथा ( वत्परिणयनसहस्सविकमवियभियबल) प्रतिपक्षीभूत मुभटो को मारने में तत्पर बने हुए अनेक सरम सुभटी के पराक्रम से जहा पर शत्रु का सैन्य-अथवा घल-सामथ्र्य विक्षोभित
, तथा " सप्पहारकरणुज्जयकरे " दुश्मन सेनिजी 6५२ प्रडार ४२वाने भाटे या भुमटाना हाय यादी २हा छ, तथा “अमरिसवसतिव्यरत्तनिहारितन्छे" ल्या "अच्छे' पाशनी मन्ने मा "अमरिसवस" अावशथी निदारित" ५५ -पा२॥ २डित धन “तिव्वरत्ता" सत्यता मनी २ छ, तथा “वेरदिट्टि" वैरवृत्तिथा “कुद्ध" अपायमान थयेस सुमटावा" चोट्रिय" राती "तिवली" पातपाताना माया "त्रिवली" (पायमान थत। ४ामा ५७ता १२यसीमा) तथा “कुडिलभिउडिकय" या सभरी-प्रटी पाणे यी २ ७. तथा "वहपरिणयनसहस्सविकमवियभियरले" भनाना भावान આતુર બનેલા અનેક હજાર સુભટના પરાક્રમથી જ્યા દુશ્મનના