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પદ
भय्याकरणसूत्रे
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'पगडपडाग उत्रियजयतीचामरचलत उत्त यारगभीरे' प्रकटपता कोच्छ्रित वजवैजयन्तीचामरचलन् उनान्धकारगम्भीरेतन माअपमाना याः पताकाः विशालपताकाः उन्द्रिताः=भत्यू स्थिता' ये जा:लघुपताः वैजयन्त्यश्व-विजयपताका तथा चामराणि चरन्ति उमाणि च ते कृतेनाधारेण गम्भीरे गहने तथा ' हे सियहत्विगुलगुला रह गया हरहराइय आफोडियसीनाजिलिय विभीमगनिए ' व ' हयहे सिप' हयहेपित = दयानाम् = अधाना हेपितशत 'हरि' इस्तिगुलगुलायित हस्तिना - गजाना गुलगुलायित = गुलगुलः 'रघगवगाइय' स्थगननाति = धारता रथाना घनयनेति शब्द तथा पाइपहरहराइय ' ' पदाति हरहराति= पदातीना सैनिकाना हरहरेति मन्दित ' आफोडिय ' आस्फोटित = बाहुपरिस्फोटन 'सोहनाय ' सिंहनादः सिंहस्येर शब्दकरण 'डिलिय सहित सीत्कारकरण से (आडोविए) जो आडपर युक्त बना हुआ है । (पगड) दूर रहने पर भी इमान ऐसी (पडाग ) विशाल पताकाओं से, ( उच्छित्र) ऊँची की हुई ऐसी (घ) लघुपताकाओ से, (वेजयती ) वैजयन्ती - विजय सूचक ऐसी बजाओ से, तथा ( चामर ) चामरों से एव ( चलतउत्त) चचलोंसे किये गये (अधधार) अधकारसे जो (गभीरे) गहन हो रहा है, तथा जहाँ (हसिय) घोड़ो की हिनहिनाटके शब्द हो रहे हैं, (हत्विगु लगुलाइय) हाथियों की गुरगुलाहट हो रही है, ( रघणघणाइय) इधर उधर दौडते हुए रथों का जहा घनघनाट शब्द हो रहा है, (पाइकहर हराइय) पदातियों की जहा हर हाट-' हरहर' इस प्रकार को तुमुल ध्वनि हो रही है, ( आफोडिय) वीर अपनी २ भुजाओं का जहाँ आस्फालन कर रहे है- फटकार रहे है, (सीहना ) सिंह के जैसी जहा
पडाग " विशाल पताायोथी, લઘુપતાકાઓથી,
દૂર દૂર હાવા છતા પણ નજરે પડતી એવી " उच्छिय " उसी रामेली भेषी " धय " " वेजयती" विश्य सूथ' ध्वन्नशोथी, तथा "चामर" ग्रामरोथी मने "चलतछत्त" ययण छत्रीथी इशयेस " " अथयार घारथी ? ' गभीरे" गहुन थह गयुधे, तथा न्या “ह ्यहेसिय” घोडाभोनी हुए डयुटीनो भावान् थ रह्याे, “हत्यिगुलगुलाइय” હાથીઓની ગુલગુલાહટ થઇ વ્હો છે, રસ્થાના ધણધણાટ જ્યા ચાલી રહ્યો છે જ્યા હર હેરાટ હર હર ” એ પ્રકારના ભય ધ્વનિ ચાલી રહ્યો છે, आकोडिय જ્યા વોરા પાત પોતાની ભુર્જાઓનુ આસ્ફાલન કરી રહ્યા છે
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"" रघणचणाइय આમ તેમ ઢોડતા
पाइक हरहराइय " पहाती यायहणना
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ફટકારી રહ્યા છે 'सोहनाथ " सिडना पीना नाथ रही छे,