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মহাকালের उरसा पक्षास्थलेन सह शिरोमुग्वाः-उर्धमुग्या पदाः यण्टे ग्रीवाया तोणाःणीराः 'तरकस ' इति 'तीरभाता' इति या गापामतीता येते तथा पताहगा नृपाः गच्छन्ति सग्रामे इत्याद -'पासियारफलगरहयपर कम्मरभराग्वरवापर करचियमुनिसियसरपरिसरहारकमुयाचगवगवारानियायमग्गे । पाशित वरफलफरचितमकरसरमसग्यरचापफरकगचितानिगितगरसर्परदकरकमुन्यमानयन चण्डवेगपारानिपातमार्ग-तत्र : पासिय' इति स्पृष्टानि = हस्त धृतानि वरफलमानि-परशसमहारमतिरोधाशस्त्राणि । ढाल ' इतिप्रसिद्धानि येस्ते, तथा रचिता कृतो रिपुत्रपतिघाताय 'पहार' इति प्रारः - रचनाविशेषण सैन्यसमूहो येस्ते, तथा सरभमा-महर्पा सजेगा या खरचापकरा-निष्टुरधनु कठतोणा ) इनके वक्ष्यस्थल पर तूणीर-तरफस-बाधा जाता है, इनमें उर्वमुख करके वाणग्रीवा के पास भरे रहते हैं । इस प्रकार से पहिले सज्जित होकर कितनेक राजा सग्रामभृमि में यद करने के लिये (अई वयति ) उतरते ह । इस प्रकार से या सव लगा लेनाचारिये। जिस युद्ध मे राजा उतरते हैं वर युद्ध किस प्रकारका होना है ? सो कहते हैजिस मग्रामभूमिमें (पासियवरफलग) निप्टर धनुर्धारीजन अपने ऊपरस परके शत्रप्रहारोंको रोकनेके लिये ढालोको हायोंमे लिये होतेहै, (रइयप कर ) शत्र के शस्त्रों का प्रतिवात करने के लिये वे अपनी २ सेना को एक विशेष प्रकार की रचना में स्थापित किये हुए रहते हैं तथा (सर भस) परस्पर मे युद्ध करने का चाव जहा आपसमे खून चढ़ा बढा होता है-दर्प अथवा वेग से जो युक्त होते हैं ऐसे (चावकर) वनुर्धारियों
" उरसिरमुहबद्धफठतोणा" तमना पक्षन्य ५२ त७२-माया माधेवा डाय 3 તે ભાથામાં બાણે ઉર્ધ્વમુખ રહે તેમ, ડેકની પાસે ભરેલા રહે છે. આ રીતે પહેલા સજજ થઈને કેટલાક રાજાએ યુદ્ધ કરવાને માટે રણમેદાનમાં “ ક वयति " तरी ५ , ये प्रश्न समय मही सभल पाना યુદ્ધમાં રાજા ઉતરે છે તે યુદ્ધ કેવું હોય છે? તેના જવાબમાં કહે છે२ महानमा “पासियवरफलग' निय धनुषाशमा दुश्मनाना श२ प्रहार शवाने भाटे पाताना डायमा हात राणे ), तथा "रइयपहकर" शत्रुना शस्त्राना મકાબલે ડરવાને માટે તેઓ પિતપતાની સેનાને એક વિશિષ્ટ પ્રકારની વ્યુહ રચના नामागावे, तथा “सरभस" भन्योन्य सानाशान्य भू २७ छ उप अया वेगथी युति यछे सेवा "चावकर" धनुर्धाशमा A rया "वरचि